Shubhra Varshney

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कंगन

कंगन

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आज आईसीयू में लेटी अपनी सासू मां का पीला मुख आस्था को बहुत द्रवित कर रहा था। यह उसका स्नेह बंधन था अपनी सास या फिर अपने पति की मां होने की जिम्मेदारी का एहसास कि यह जानते हुए भी अपनी सास रुकमणी देवी कि वह सदैव अवांछित बहू रही थी आज उनको निस्तेज यू बिस्तर पर पड़ा देख उसका मन बहुत व्याकुल था। इंजीनियरिंग की तृतीय वर्ष में जब उसकी प्रखर से दोस्ती प्यार में परिवर्तित हुई तो पढ़ाई पूरे करते-करते दोनों ने साथ जीवन बिताने का निर्णय कर लिया था। इसी के चलते दोनों ने एक ही कंपनी में अपने कैरियर की शुरुआत की। गुणी आस्था से प्रभावित प्रखर के पिताजी अवधेश सिंह शीघ्र ही इस संबंध के लिए तैयार हो गए पर प्रखर की मां को इस रिश्ते को स्वीकारने में स्वयं को बहुत तैयार करना पड़ा। विवाह के उपरांत उसका साधारण स्वागत उसकी दोनों जेठानिओं और सास के शुष्क व्यवहार की चुगली कर रहा था। ढूंढे तमाम रिश्तो को छोड़कर श्यामवर्णी आस्था का प्रखर का चुनाव रुकमणी देवी के मन में एक खटास उत्पन्न कर गया था। हां यह अलग बात थी कि स्वयं आस्था अपनी रूप की विराट व्यक्तित्व की स्वामिनी सास को देख कर बहुत प्रभावित हुई थी और जब किसी विशेष अवसर पर वह तैयार होतीं तो आस्था उन्हें देखकर मंत्रमुग्ध हो जाती खासकर उनके हाथों के पहने जड़ाऊ कंगन उसका मन मोह लेते।

आस्था ने सोच रखा था अपने भाई के विवाह में वह अधिकार से अपनी सासू मां से कंगन ले जाकर पहनेगी और इसी के चलते अपने विवाह के 6 माह बाद जब अपने छोटे भाई के विवाह में आस्था ने सासू मां से पहनने के लिए झिझक के साथ उनके कंगन मांगे तो उन्होंने बड़ी निर्ममता से उसे यह कहकर झिड़क दिया था कि उसकी हैसियत नहीं थी उन्हें पहनने की। उसे मां के कहने का इतना बुरा नहीं लगा था जितनी जेठानिओं की सास का साथ देते आवाजें उसे व्यथित कर रही थी। विवाह के बाद जब पहली तनख्वाह उसने अपने ससुर अवधेश सिंह को दी तो उन्होंने सबसे पहला काम उसके कंगन बनवा कर करा। भाई के विवाह में उसके परिवार ने उसके कंगनों की प्रशंसा की लेकिन सासु मां के दमकते कंगन ना पहन पाने की टीस उसके मन में अंत तक रही। एक बार एक अप्रत्याशित घटा रुकमणी देवी अपने वही जड़ाऊ कंगन कहीं रखकर भूल गई। प्रखर और अवधेश सिंह के भरसक विरोध के बावजूद भी वह आस्था पर उनकी चोरी का आक्षेप लगाने से ना चूकी थी। आस्था के कमरे की तलाशी लेने के बाद और स्वयं अपने कमरे में उन कंगनों को पाए जाने के बाद भी उन्हें आस्था से किए व्यवहार पर तनिक भी अफसोस नहीं था हां अब आस्था का मन उनके प्रति थोड़ा कसैला जरूर हो गया था। दोबारा कंगन ना खो जाएं इस वजह से रुकमणी देवी ने वह कंगन रोजाना में पहनने शुरू कर दिए थे।

आज अपनी सास को आईसीयू में इस तरह लेटे देखकर उसका मन कसैलेपन को छोड़कर उनके प्रति दया के भाव से भर गया था। पिछले 5 वर्षों में अपने पुत्र ध्रुव के हो जाने के बाद भी आस्था ने ऑफिस के साथ पारिवारिक जिम्मेदारी निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी ।वह घर का काम निपटा कर ही ऑफिस जाति और ऑफिस से आते ही तुरंत गृह कार्य में लग जाती फिर भी रुकमणी देवी का शुष्क व्यवहार उसके प्रति यथावत था। अचानक रुकमणी देवी को हार्ट अटैक आया और इसके लिए उनकी एक छोटी सर्जरी होनी थी। जब रुकमणी देवी को ऑपरेशन थियेटर में ले जाए जाने लगा तो नर्स के कहने पर आस्था ने उनके कंगन उतार अपने ससुर को पकड़ा दिए थे। अब रुकमणी देवी ऑपरेशन के पश्चात पूरे 15 दिन अस्पताल में रहीं। आस्था जानती थी कि उसकी सास उसे कम पसंद करती थी , इसी कारण जब उसने अपनी दोनों जेठानिओं से बारी-बारी उनके साथ अस्पताल में रुकने को कहा तो दोनों ने कोई न कोई कारण को बताकर अपनी असमर्थता जाहिर कर दी। आस्था को ही ध्रुव को अपनी मां के पास छोड़ कर पूरे 15 दिन रुकमणी जी के साथ अस्पताल में रुकना पड़ा इस बीच परिवार के सभी सदस्य उन्हें देखने आते जाते रहे। ऑपरेशन के 3 दिन बाद ही रुकमणी जी को होश आ गया था वह बिना कुछ कहे आस्था की मौजूदगी से स्वयं को सुरक्षित महसूस कर रही थी। अस्पताल से घर ले जाने पर जब उनका परिवार एकत्रित था तो रुकमणी देवी को अपने सूने हाथ देखकर अचानक अपने कंगन याद आए उन्होंने कंपकपाते स्वर में कहा, "मेरे कंगन कहां गए।" कहते हुए उनकी निगाह आस्था की तरफ थी। सबको यही अंदेशा था कि एक बार पुनः उन्हें आस्था पर शक हुआ था। अवधेश सिंह तुरंत उनके कंगन ले आए। कंगन पाते ही रुकमणी देवी ने आस्था को बुलाकर उसके हाथों में पहना दिए। देख कर उसकी दोनों जेठानियां मुंह बनाती हुई कक्ष से बाहर निकल गई थी। कंगन पहनते ही एक फीकी हंसी आस्था के होठों पर तैर गई क्योंकि कंगन पहनने की खुशी स्वयं दम तोड़ गई थी।


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