असली हीरो

असली हीरो

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15 अगस्त यानी आज़ादी का पर्व। सुबह ही दोस्त मनु का फ़ोन आ गया था "प्रखर चल नई मूवी देखकर स्वतंत्रता दिवस सेलिब्रेट करते हैं। मेरे घर आजा। थोड़ी देर में ही तैयार होकर प्रखर ने मनु के घर के लिए सिटी बस पकड़ ली। बस कंडक्टर को अपनी ओर आते देख उसने जेब में हाथ दिया। वह पर्स भूल गया था। मनु का घर स्टेडियम के पास था। कंडक्टर के टिकट मांगने पर उसने बहाना बना "जी मैं स्वतंत्रता दिवस समारोह में स्टेडियम जा रहा हूँ।"

"आप कहीं भी जाएँ। या तो टिकट लीजिए या फिर उतर जाइये।"

बगल की सीट पर बैठे अति वृद्ध सज्जन ने पुराने कुर्ते से कांपते हाथों से मुड़े हुए रूपये निकाल कर कंडक्टर को थमाते हुए कहा "आप इनका और मेरा टिकट दे दीजिए।" कंडक्टर के जाने के बाद उसने उन सज्जन से कहा "मैं पर्स भूल गया था। आप अपने बारे में बता दीजिए मैं आपको पैसे लौटा दूँगा।"

"मैं एक स्वतंत्रता सेनानी। पैसे की कोई बात नहीं। बरसों बाद किसी नवयुवक को निःस्वार्थ स्वेच्छा से स्वतंत्रता समारोह में जाते हुए देख रहा हूँ।" कहते हुए उनकी धुँधली आँखें उभर आई नमी से और धुँधली हो गई थी।

"अभी तक पहुंचा नहीं।" मनु का फ़ोन था।"मूवी छोड़ यार। मैं यहाँ स्टेडियम में एक असली हीरो के साथ बैठा हूँ।"



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