अनूठा प्रेम
अनूठा प्रेम


आज फ़िज़ाओं में कुछ अलग ही बात थी। हवा के तेज झोंके...जैसे सारी भूली बिसरी यादें ताजा कर रहीं थीं। सूरज की किरणें अपने बाणों से हल्की सी चुभन कर रहीं थीं।
प्रार्थना टैरिस पर बैठे अपनी पुरानी एल्बम देख रही थी। उसी एल्बम के एक पन्ने पर उसके स्कूल की तस्वीर भी थी। अचानक पन्ने उलटते हुए प्रार्थना की नज़र उस तस्वीर पर पड़ी... !!!
वह अपलक उसे निहारती हुई बरसों पुरानी उस स्कूल की दुनियाँ में पहुंच गयी। सारी की सारी बिसरी यादें एक - एक कर आँखों के सामने आने लगी। प्रार्थना जैनियों के द्वारा संचालित गुरुकुल स्कूल में पढ़ती थीं। स्कूल में रुपेश उसका सबसे अच्छा दोस्त था। बचपन से ही दोनों एक साथ, एक ही स्कूल में पढ़े थे, साथ खेले- कूदे, एक दूसरे की परेशानीयों में हमेशा साथ खड़े रहे।
प्रार्थना एक बहुत ही सुलझी हुई, शांत और पढ़ाई में खूब होशियार लड़की थी। रूपेश भी पढ़ाई में अच्छा पर थोड़ा शरारती किस्म का लड़का था।
रूपेश जब भी कभी किसी उलझन में होता प्रार्थना देवदूत बनकर हमेशा उसका साथ देती। जैसे - जैसे वह बड़े होते गए प्रार्थना के मन में रूपेश के लिए प्रेम के अंकुर फूटने लगे। उसकी हर परेशानी को अपना समझ कर गले से लगा लेती।
देखते- ही - देखते वह दोनों 12 वी उत्तीर्ण हो गए और अब काॅलेज में पहुँच गए। दोनों दिल्ली में एक साथ एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहें थे। वे उम्र के उस पड़ाव पर पहुंच चुके थे, जहाँ दिल अपना साथी चुन ही लेता है।
कुछ समय बाद उनकी दोस्ती काॅलेज में सीखा से हो गई। अब काॅलेज में तीनों साथ रहा करते थे।
प्रार्थना रूपेश से अपने प्यार का इज़हार करने के लिए मौका तलाश रही थी। कई बार कोशिश करती मगर रूपेश को देखते ही उसकी धड़कनें तेज हो जाती, शब्द जुबां पर आकर ही अटक जाती।
तभी काॅलेज में टूर पर जानें का प्रोग्राम बना। रूपेश की टूर पर जाने की इच्छा नहीं थी, पर प्रार्थना और सीखा ने उसे राजी कर ही लिया।
अगले दिन वे टूर के लिए निकल गए। प्रार्थना ने सोचा... इसी बहाने मौका देखकर वह उससे अपने दिल की बात कह देगी। रात का वक्त था सभी लोग चांदनी रात में खुले आसमान के नीचे गीत संगीत का आनन्द ले रहे थे। प्रार्थना और रूपेश इक दूसरे को देख रहे थे। दोनों ही आँखों ही आँखों में इशारे कर रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे दोनों को एक - दूसरे से कुछ कहना है। प्रार्थना और रूपेश पहाड़ी के पास आ गए। दोनों मन ही मन मुस्कुरा रहे थे।
प्रार्थना रूपेश से कहती है....रूपेश "मैं..... मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूं।"
रूपेश - "मैं भी तुम्हें कुछ बताना चाहता हूँ। " लेकिन पहले तुम अपनी बात कहो।
प्रार्थना - नहीं ! पहले तुम।
रूपेश - "अच्छा बाबा! मैं ही पहले अपनी बात कहता हूँ।
प्रार्थना तुम मेरे बचपन की दोस्त हो, मैं अपनी हर बात तुमसे सबसे पहले कहता हूं। तुम बहुत अच्छी हो मेरी सबसे अच्छी दोस्त। इसीलिए मैं तुम्हें कुछ बताना चााहता हूँ ।"
वह खुशी से फूले न समा रही थी।
तभी......
रूपेश- "मैं सीखा को चाहने लगा हूँ। उसे मैं अपने प्यार के बारे में बता देना चाहता हूँ।"
प्रार्थन को ऐसा झटका लगा....मानो उस पर गाज गिर गया हो। उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। उसका गला भर आया। एक पल में सारी ख़ुशियाँ छिन गई। वह स्तब्ध रह गयी।
तभी उन्हे ढूंढते हुए वहां सीखा आ पहुँची उसने रूपेश की सारी बातें सुन ली।
प्रार्थना वहां से तुरंत दौड़ कर अपने कमरे मेें आ गयी और फुटफुट कर रोने लगी। आखिर उसने बचपन से लेकर आज तक रूपेश के अलावा किसी लड़के की ओर देखा तक न था। उसके बरसों का प्रेम अब किसी और का हो चुका था।
उसका पूरा बदन ज्वर से तप्त हो गया था। रात भर उसकी आँखें झरने की भाँति बहती रहीं।
अगले दिन वे वहां से वापसा आ गए। परीक्षा नज़दीक था, अब तैयारी की छुट्टियांं भी लग गई।
परीक्षा होते ही वह घर वापस लौट आई। और चिकित्सा में सेवा देने लगी।
अचानक प्रार्थना की माँ टैरिस पर आयी और ज्यों ही उसके हाथ से एल्बम छीना। वह अपनी यादों की दुनियाँ से तुरंत वास्तविकता में आ पहुँची। झट से आँसू पोछने लगीं।
माँ ने कहा.... बेटी एक बार और सोच ले। यह आसान नहीं।
पर प्रार्थना का फैसला अडिग था। वह तय कर चुकी थी कि अपनी पूरी जिन्दगी जैन साध्वी बनकर दूसरों की सेवा में बिताएगी और आजीवन ब्रम्हचर्य का पालन करेंगी।
जिस प्रकार मीरा के मन में कृष्ण के अलावा किसी अन्य का बोध तक नहीं था, प्रार्थना भी रूपेश के प्रेम में सारी सुख-सुविधाएँ त्याग, जोगन हो चली थीं।
"भले ही उसका प्रेम एक तरफा था, पर वह अपने प्रेम के प्रति संपूर्णतया ईमानदार थी। उसका प्रेम अनूठा था। प्रेम का नाम केवल पाना ही नहीं अपितु खोना भी होता है।"