अंतर्वस्त्र
अंतर्वस्त्र
प्रथम का अभी अभी स्थानांतरण हैदराबाद से बैंगलोर हुआ था। वह एक एम एन सी में काम करता था और अच्छी पगार पाता था। उसकी पत्नी प्रज्ञा भी उसी कंपनी में जॉब करती थी। प्रज्ञा को भी बैंगलोर ऑफिस में भेज दिया गया था। दोनों ने बैंगलोर में ज्वाइन कर लिया था। दोनों कुछ दिन एक अच्छे से होटल में रहे और इसी बीच एक अच्छी सी सोसायटी में एक बढ़िया फर्निश्ड फ्लैट किराये पर ले लिया उन्होंने।
नये फ्लैट में शिफ्ट हो गए दोनों। यह फ्लैट इस तरह से बना था कि उस फ्लैट की बॉलकानी से दोनों ओर के फ्लैट नजर आते थे। ताजी हवा के लिए प्रथम थोड़ी देर बॉलकानी में बैठता था। इस बीच में जो कोई भी व्यक्ति अपनी बॉलकानी में आ जाता था , प्रथम उससे नमस्कार जरूर कर लेता था। महानगरों में इतना हो जाए वह बहुत है वरना पड़ोसी को देखे सालों हो जाते हैं कभी कभी। प्रथम अभी तक अपनी प्राचीन संस्कृति को लपेटे हुए बैठा था जबकि अधिकतर लोगों ने उसे उतार कर पाश्चात्य संस्कृति का शॉल ओढ़ लिया था।
एक दिन उसकी निगाह पड़ोसी की बालकनी पर गई। वहां कोई था नहीं अलबत्ता "अरगनी" पर कपड़े सूख रहे थे। वहां पर साड़ी , शर्ट पेंट के साथ साथ अंतर्वस्त्र भी सूख रहे थे। पुरुषों के भी और महिलाओं के भी। पता नहीं क्यों उसे थोड़ा अजीब सा लगा।
फिर उसने अगले फ्लैट की बॉलकानी में निगाह डाली। वहां पर भी ऐसा ही नजारा था। फिर अगले फ्लैट में देखा , वहां भी वही बात थी। उसकी निगाहें जहां तक जा सकती थी , उसने पहुंचाई और जायजा लिया। ज्यादातर वैसी ही स्थिति थी सब जगह। वह सोच में पड़ गया।
किसी के घर में कितने पुरुष और कितनी महिलाएं हैं , यह अंतर्वस्त्रों को देखने से ही पता चल जाता था। यहां तक कि उनका आर्थिक स्तर और उनका "मिजाज" भी इनसे पता चल रहा था। उसे यह अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन वह खामोश था। वह खुद भी सोच रहा था कि मुझे क्या लेना देना है , इन सबसे ? मगर वह अपना दिमाग वहां से हटा नहीं पाया था।
अचानक उसको खयाल आया कि क्या प्रज्ञा भी ऐसे ही सुखाती है अपने अंतर्वस्त्र ? तब उसने अपनी बॉलकानी में सूख रहे कपड़े देखे। उसके अंतर्वस्त्र तो दिखाई दे रहे थे मगर प्रज्ञा के नजर नहीं आ रहे थे। उसने सोचा कि प्रज्ञा के सूख गये होंगे इसलिए वह उन्हें ले गई होगी। बात आई गई हो गई।
अचानक एक कबूतर आया और वहां पर बैठकर गुटर गूं करने लगा। उसने प्रथम के ऊपर "बीट" भी कर दी। प्रथम ने गुस्से में उस कबूतर को वहां से उड़ा दिया। अब वह उस "गंदगी" को साफ करना चाहता था , मगर किससे करे ? अचानक उसकी निगाह प्रज्ञा के टॉवल पर पड़ी जो वहां सूख रहा था। उसने सोचा अभी तो इस टॉवल से साफ कर लेता हूं , बाद की बाद में देखेंगे।
उसने जैसे ही टॉवल उठाया उसके नीचे प्रज्ञा के दोनों अंतर्वस्त्र सूखते हुए मिले। "अच्छा तो प्रज्ञा इनको टॉवल के नीचे रखकर सुखाती है" उसने सोचा। वह कबूतर की गंदगी अपने कपड़ों से साफ कर अंदर हॉल में आ गया। वहां पर प्रज्ञा टेलीविजन में कोई धारावाहिक देख रही थी। उसे देखकर प्रथम ने पूछा
"प्रज्ञा, तुम ये अपने अंतर्वस्त्र टॉवेल के नीचे रखकर क्यों सुखाती हो" ?
जैसे ही प्रज्ञा ने यह प्रश्न सुना , उसने प्रथम को ऐसी नज़रों से देखा जैसे उसने कोई बहुत ही आपत्ति जनक प्रश्न पूछ लिया हो। प्रथम ने उसकी आंखों में सीधे देखते हुए और भी दृढ़ता के साथ अपना प्रश्न दोहराया तो प्रज्ञा ने कहा "ये क्या वाहियात प्रश्न है" ?
प्रथम एक स्मित मुस्कान के साथ उसकी आंखों में सीधे देखता रहा और कहा "बिल्कुल सीधा सपाट प्रश्न है , मोहतरमा। इसमें वाहियात क्या है ? तुम मेरी पत्नी हो और मैंने कोई ऐसा प्रश्न नहीं पूछ लिया जिसका उत्तर देने में संकोच किया जाये" ?
"कभी कभी तो आप भी न ऐसी बात कर देते हैं कि बस, पूछो ही मत।" प्रज्ञा टालते हुए बोली।
"टालने की कोशिश मत करो प्रज्ञा ? ऐसी क्या बात है जो तुम मेरे अंतर्वस्त्र तो खुले में सुखाती हो और अपने एक टॉवल के नीचे। कोई तो वजह होगी इसकी" ?
प्रज्ञा ने देखा कि अब टालना असंभव है तो उसने पहले कुछ सोचा फिर कहा "कारण तो मुझे भी नहीं पता। मेरी मम्मी अपने अंतर्वस्त्रों को ऐसे ही सुखाती थी। जब मैं लगभग पंद्रह सोलह साल की हुई तब मैंने एक दिन अपने अंतर्वस्त्रों को ऐसे ही खुले में तार पर डालकर सुखा दिया। उस दिन मम्मी ने मुझे खूब डांटा और कहा कि इनको ऐसे खुले में मत सुखाना फिर कभी। मैंने पूछा भी था मम्मी से कि ऐसा क्यों तो वह बोली हर प्रश्न का जवाब नहीं होता है लेकिन मैं कह रही हूं इसलिए मत सुखाना। कभी कभी अपने मां बाप की कुछ बातें बिना ना नुकुर के भी मान लेनी चाहिए। और उस दिन से मैंने अपने अंतर्वस्त्रों को कभी भी खुले तार पर नहीं सुखाया। इसके अलावा मुझे ऐसा महसूस होता है कि यदि मैं इन्हें खुले में सुखाऊंगी तो मुझे खुद शर्म आएगी"।
प्रथम कुछ देर तक सोचता रहा फिर बोला "चलो तब की बात छोड़ो , अब सोच कर बताओ कि उन्हें खुले में सुखाना चाहिए या नहीं" ?
"मैं ऐसे फालतू के सवालों में अपना दिमाग नहीं लगाती। क्या फर्क पड़ता है इससे" ?
"फर्क पड़ता है प्रज्ञा , बहुत फर्क पड़ता है। पता नहीं मैं कितना सही हूं या नहीं मगर मुझे लगता है कि तुमको तुम्हारी मम्मी ने सही कहा था।"
"ऐसा कैसे कह सकते हैं आप ? कोई तो तर्क होगा इसके पीछे" ?
"है , बिल्कुल है। मुझे लगता है कि मर्दों की निगाहें चंचल होती हैं और लोलुप भी। स्त्रियों के बाह्य पहनावे और श्रंगार के सामानों से भी उसके मन में "जुगुप्सा" पैदा हो जाती है। तुमने ज्यादातर फिल्मी गानों में चूड़ी, कंगन, बिंदिया, कजरा, गजरा वगैरह का उल्लेख सुना होगा कि किस तरह इन सबसे "नायक" की नींद उड़ जाती है। जब इनसे ही पुरुषों की नींद उड़ जाती है तो अगर वह महिलाओं के अंतर्वस्त्र देख ले तो फिर क्या हो ?"
प्रज्ञा ने प्रश्न का उत्तर दिए बिना अनभिज्ञता से वही प्रश्न दोहरा दिया "आप ही बताइए कि क्या होगा ? "
"इन अंतर्वस्त्रों को देखने से पुरुषों के मन में घोर जुगुप्सा जागृत होगी और फिर उससे काम वासना पैदा होगी। "काम वासना" के वशीभूत होकर पुरुष कुछ गलत हरकत कर सकते हैं। शायद इसीलिए इनको टॉवल के नीचे छिपाकर सुखाते हैं। "
प्रथम की इस बात से प्रज्ञा चिढ़ गई और कहने लगी "इसमें पुरुषों को उत्तेजित होने की क्या जरूरत है ? इसका मतलब है कि हम ये कपड़े भी नहीं पहनें ? वो कपड़े भी नहीं पहनें ? ऐसे ना सुखाएं , वैसे ना सुखाएं ? हमें अपनी मर्जी का कुछ करने भी दोगे या नहीं? "
"तुम्हारा आक्रोशित होना एकदम जायज है , प्रज्ञा। मैं कहां कह रहा हूं कि तुम ऐसा करो , वैसा करो। तुम ये मत करो , तुम वो मत करो। तुम तो पहले से ही यह सब कर रही हो न और वह भी अपनी मम्मी के कहने पर। इसका मतलब है कि यह तथ्य बहुत पुराना है जिसे हमारे पुरखों ने जान लिया था मगर हर कोई उसका मर्म नहीं जानता था। बस, उसे परंपरा की तरह निभाता जा रहा था। अच्छा , एक बात बताओ ? तुमने कभी सुना है कि किसी बड़े तपस्वी या राजा के मन को डिगाने के लिए अप्सराओं या सुंदर स्त्रियों को काम में लिया जाता था ? "
"हमारे शास्त्रों में ही कई बार उल्लेख हुआ है कि फलां मुनि की तपस्या भंग करने के लिए किसी अप्सरा को भेजा गया था। यह बात तो सब जानते हैं। "
"बिल्कुल सही कहा तुमने। ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि जब किसी बड़े ज्ञानी ध्यानी की तपस्या भंग करने के लिए रूप और सौंदर्य का सहारा लिया गया। ऋषि पाराशर जब नाव से नदी पार कर रहे थे तब उसे चलाने वाली सत्यवती ( वही महाभारत वाली जिसके कारण भीष्म ने प्रतिज्ञा ली थी ) पर ऋषि पाराशर का मन आ गया और उन्होंने वहीं पर प्रणय निवेदन कर दिया। दोनों के संयोग से महामुनि वेदव्यास पैदा हुए जिन्हें ऋषि पाराशर ने पाला था न कि सत्यवती ने। ऋषि विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के लिए मेनका को भेजा गया। तब दोनों के संयोग से शकुंतला का जन्म हुआ जिसका पुत्र महा प्रतापी राजा भरत हुआ। ऐसे ही और अनेक उदाहरण हैं। इसका मतलब है कि पुरुषों की सबसे बड़ी कमजोरी "स्त्री" ही है। क्या यह बात सही नहीं है?"
प्रज्ञा कुछ नहीं बोली। बस इतना कहा "कहते जाओ। अपने विचार बताते जाओ"।
"तुमने कभी नहीं सुना होगा कि किसी स्त्री के सतीत्व को भंग करने के लिए किसी पुरुष को काम में लिया गया। जब भी किसी स्त्री का सतीत्व भंग किया गया तब धोखे का ही सहारा लिया गया। जैसे अहिल्या बाई। इन्द्र और चंद्रमा ने षड्यंत्र रचकर उनका सतीत्व भंग किया था। जैसे राक्षस राज जालंधर की पत्नी का सतीत्व भंग करने के लिए स्वयं भगवान विष्णु ने जालंधर का वेष बनाया और फिर वृंदा का सतीत्व भंग किया। तब जालंधर का वध हो सका था और फिर वृंदा को भगवान ने वचन दिया था कि वे उसे पत्नी रूप में स्वीकार करेंगे। वृंदा बाद में "तुलसी" बनी जिसका विवाह विष्णु भगवान के साथ हुआ था। मेरा कहने का मतलब यहां इतना है कि पुरुषों में काम वासना बहुत अधिक होती है जिसे वे छुपाते नहीं हैं और उस वासना के वशीभूत पुरुष दुष्कर्म तक कर देते हैं। छोटी छोटी बच्चियों को भी अपनी हवस का शिकार बना लेते हैं। ऐसे में ये अंतर्वस्त्र उसकी जुगुप्सा जागृत करने में उद्दीपन का कार्य करते हैं। यह बात तुम्हें अच्छी लगे या नहीं पर यह सौ फीसदी सही है। स्त्रियों में वासना कम नहीं होती है मगर उस पर नियंत्रण करना जानती हैं वे। इसलिए उनके द्वारा की गई ज्यादतियों की संख्या लगभग न के बराबर है। शायद यही कारण रहा होगा जिससे स्त्री अपने पूरे शरीर को ढक कर रखती हैं। यहां तक कि अपने अंतर्वस्त्रों को भी छुपाकर सुखाती है।"
प्रज्ञा ने बड़े आश्चर्य से प्रथम की ओर देखा और कहा "मैं तो अब तक यही समझती रही हूं कि आप एक कंप्यूटर इंजीनियर हैं , मगर आप तो समाज शास्त्र के प्रोफेसर निकले।
इस बात पर दोनों खिलखिला कर हंस पड़े।
