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Meenakshi Sharma

Tragedy

3  

Meenakshi Sharma

Tragedy

अंतिम स्पर्श

अंतिम स्पर्श

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'करुणा, गैलरी में बाएं वाला अंतिम कमरा दमयंती जी का है। वहां कतई मत जाना... तीन वर्ष से कोमा में हैं, उनकी देखभाल के लिए नर्स है।'

हाल ही में सहायिका के रूप में नियक्त करुणा की प्रश्नसूचक नज़रों के उत्तर में वर्मा जी फिर बोले...

'हमारे सेठ जी दूरदर्शी थे... हवाओं का रुख भांपते हुए जब बंटवारा किया तो अपने लिए यह बंगला वृद्धाश्रम में परिवर्तित करवाकर सुरक्षित रख छोड़ा था। दस वर्ष पूर्व सेठ जी की मृत्यु और बच्चों के अपनी ज़िंदगी में रम जाने के बाद दमयंती जी एक अंतहीन चुप्पी और एकाकीपन की चादर ओढ़े यहीं रहने लगीं। न जाने मन में क्या चाह दबी है कि प्राण .... ' 

मनाही के बावजूद आज कमरे में दाखिल हो चुकी करुणा का कलेजा दमयंती जी को देख मुँह को आ गया था। 

'यूँ लगता है ... जैसे मृत्यु का दूत यहाँ का रास्ता ही भूल गया है। चेहरे पर अपार दुःख... इतनी दुर्गति... हे भगवान! कैसे दुष्ट बच्चे होंगे ? बेटे बेटियाँ सब अपने में ही मगन? याद नहीं बेचारी माँ... इन्ही हाथों से कितनी बार उन्हें मनुहार करके खिलाया होगा। कहाँ कहाँ न दौड़ी होगी उनकी फिक्र में ? बीमारी पर उनके सिरहाने बैठ रात रात भर सुबकी होगी। आज किसी को भी मरणासन्न माँ की सुधि लेने का समय नहीं।

सोच में गुम करुणा ने झुर्रियों भरे उस हाथ को हौले से थामा ही था कि अस्सी वर्षीय कांपते हाथ की हल्की सी पकड़ में छिपी पीड़ा करुणा को भीतर तक चीर गयी। प्रतीक्षारत अधखुली आँखों की पलकों की कतारों में न जाने कहाँ से पानी जमा हो आया था। करुणा ने दमयंती जी का हाथ पूरे स्नेह के साथ अपने दोनों हाथों के बीच रख हल्के से ऐसे दबाया जैसे कोई माँ अपने बीमार बच्चे को सांत्वना दे कर कह रही हो 'मैं हूँ यहाँ बस तुम्हारे ही तो लिए'। कुछ ही क्षण बस... और दमयंती जी का हाथ ठंडा पड़ने लगा।

वर्मा जी डॉक्टर को लेकर आ चुके थे मगर यहाँ किसी डॉक्टर की आवश्यक्ता कहाँ थी। बरसों से जिस आत्मीयता और स्नेह से भरे एक 'स्पर्श' की चाह में दमयंती जी की सांस चल रही थी वो अब उन्हें मिल चुका था। उसी एक 'अंतिम स्पर्श' का अनन्त सुख साथ ले कर वो एक नई यात्रा की और बढ़ चुकी थीं।


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