अनोखा बुलावा
अनोखा बुलावा
ठक-ठक....!
"कौन ? दरवाजा खुला है आ जाओ।"
"राम राम चन्दा!"
"राम राम बाबूजी ! आप यहाँ !"
"क्यूं मैं यहाँ नहीं आ सकता ?"
"आ क्यूं नही सकते ! पर यहाँ आता ही कौन है!"
"आया न आज ! ये कार्ड देने मेरे बेटे की शादी का !
"कार्ड ! बेटे की शादी का !"
"हाँ अगले महीने मेरे बेटे शादी है तुम सब आना।"
"...और ये मिठाई सबका मुँह मीठा करने के लिये !"
कांपते हाथों से मिठाई का डिब्बा पकड़ते हुए-
"हम तो जबरदस्ती पहुंच जाते है शादी ब्याह या बच्चा पैदा होने पर तो लोग मुँह बना लेते हैं और आप हमें बुलावा देकर.....!"
"चन्दा, बरसों से तुम्हें देख रहा हूँ सबको दुआएं बांटते !"
".....!"
"याद है जब मेरा बेटा हुआ था तो पूरा मोहल्ला सिर पर उठा लिया था तुमने खुशी के मारे।"
"हाँ ! और आपने खुशी खुशी हमारा मनपसंद नेग भी दिया था !"
"तुम्हारी नेक दुआओं से मेरा बेटा पढ़ लिख कर डॉक्टर बन गया है और..... तुम सबको उसकी शादी में आना ही होगा !"
"क्यूं नही आएंगे बाबूजी जरुर आएंगे ! आपने इतनी इज्ज्त देकर बुलाया है क्यूं न आएंगे !"
कहते हुए चंदा की आँखें गंगा जमुना सी बह उठी और उसका सिर बाबूजी के आगे सजदे में झुक गया।