अनजान प्यार फोन वाला
अनजान प्यार फोन वाला
बात उन दिनों की है जब ज्ञानचंद जी की नई नई नौकरी लगी और कुछ ही सालों में विवाह भी हो गया। खामोश प्रवृत्ति के ज्ञान चंद जी के जीवन में कोई रोमांच नहीं था। पत्नी भी उनके इस उदास प्रवृत्ति से थोड़ा परेशान रहने लगी।
न कोई उमंग है न कोई तरंग है, मेरी जिंदगी है क्या एक कटी पतंग है
ज्ञानचंद जी ने पत्नी की तरफ नजरें तरेर कर देखा यह क्या चल रहा है? क्या हो गया है तुम्हें?
कुछ दिन ऐसे ही बीत गए। जिंदगी आराम से गुजर रही थी कि अचानक एक हलचल सी मची क्योंकि कुछ दिनों से ऑफिस में किसी लड़की का ज्ञानचंद जी के नाम पर फोन आने लगा था। ज्यादा ध्यान न देते हुए वह फोन को उठा लेते हैं परंतु यह सिलसिला जारी रहा। कभी वह शेरो शायरी करती। कभी रोमांटिक फिल्मों के गाने सुनाती और देखते ही देखते कुछ महीने बीत गए। इस फोन वाली की वजह से दिन रात का चैन खोने लगा। समझ में नहीं आया कि क्या करें? ऑफिस के लोग भी अजीब नज़रों से देखते। आज वह काम खत्म कर घर के लिए निकल ही रहे थे कि फिर से अचानक फोन आ गया और आज उस लड़की ने मीठी आवाज में एक गाना सुनाया
चलते चलते मेरे यह गीत याद रखना
कभी अलविदा न कहना कभी अलविदा न कहना
मैं क्यों तुम्हें अलविदा कहूंगा? और कौन हो तुम जो मुझे परेशान करती रहती हो?
लड़की हंसने लगी और गाते हुए बोली-
हम तो तेरे आशिक हैं बरसो पुराने
चाहे तू माने चाहे न माने
यह क्या फिल्मी गानों में ही अपना पूरा परिचय दोगी या कुछ बताओगी भी कि कौन हो तुम?
लड़की ने फोन काट दिया और ज्ञान चंद जी को बहुत गुस्सा आया।
उन्होंने फोन पटका और गुस्से में सीधा घर पहुंचे तो पत्नी ने पूछा क्या बात है? आजकल आप कुछ परेशान से रहते हैं? तबीयत तो ठीक है न! पहले की तरह कहीं घूमने फिरने भी नहीं जाते।
आखिर! हिचकिचाहट मैं ज्ञानचंद जी ने फोन वाली बात अपनी पत्नी को सच-सच बता दी।
सुनते ही वह हंसने लगी अच्छा मजाक कर लेते हैं। झूठ बोलने में तुम्हें बहुत मजा आता है। आज मेरा जन्मदिन है इसीलिए कहीं बाहर न ले जाना पड़े तो यह सारी कहानी सुना रहे हैं।
ज्ञानचंद जी ने पत्नी को जन्मदिन की पार्टी देने का वादा तो किया था और साथ में कार्ड और गुलदस्ता भी लाने के ख्वाब सजाए थे परंतु उस फोन वाली के चक्कर में दिमाग से बात ही निकल गई। हैरानी तब हुई जब पत्नी ने फूलों का गुलदस्ता और कार्ड दिखाते हुए एक शेर सुनाया-
न झटको जुल्फ से पानी यह मोती फूट जाएंगे
तुम्हारा कुछ न बिगड़ेगा मगर दिल टूट जाएंगे
कौन लेकर आया यह कार्ड?
ओह! कह तो ऐसे रहे हो, जैसे कि आपको पता ही नहीं!
“अजी! दिया है किसी चाहने वाले ने” पत्नी ने रोमांटिक होकर कहा
ज्ञानचंद जी समझ गए, जरूर! ये उसी लड़की ने भिजवाया होगा। कितनी अजीब बात है उसे मेरे ऑफिस से निकलने का समय पता है। मेरी पत्नी का जन्मदिन पता है। मेरा भी जन्मदिन पता होगा…..
कौन है यह?
अगले दिन ज्ञानचंद जी ऑफिस से बाहर निकल ही रहे थे कि उसी लड़की का फोन आ गया।
इतने दिन हो गए आपसे बात करते करते हैं परन्तु आज तक हम मिले नहीं। लड़की ने शिकायत भरे अंदाज में कहा- क्या आपका मुझसे मिलने का मन नहीं करता?
करता है न! ज्ञानचंद जी ने कहा ,परंतु मैं तो आपको जानता ही नहीं और अगर मिल भी गया तो पहचानूंगा कैसे?
अरे! आप हाथ में एक सुर्ख गुलाब का फूल और पीला रुमाल लेकर ठीक कल सुबह 9:00 बजे कॉफी होम आ जाना। मैं वहीं पर आपका इंतजार करूंगी।
अब तो ज्ञानचंद जी खुद गुनगुनाने लगे।
कल उनसे पहली मुलाकात होगी
फिर आमने सामने बात होगी
फिर होगा क्या, क्या पता क्या ख़बर
सुबह ठीक 9 बजे से पहले, रात भर की नींद हराम करके और हाथ में गुलाब का फूल और पीला रुमाल लिए ज्ञानचंद जी समय से पहले ही कॉफी होम पहुंच गए। भीड़ बहुत कम थी इक्का-दुक्का लोग ही यहां वहां बैठे थे। सभी मर्द ।
ज्ञानचंद जी दिल धड़क रहा था और वह चुपचाप एक टेबल कुर्सी के पास जाकर यहां-वहां नजरें घुमाने लगे। कहीं पर वह लड़की उन्हें नजर नहीं आई तो वह चुपचाप वही बैठ गए। वह गुनगुना रहे थे-
दिल धड़क धड़क के कह रहा है आ भी जा
तू हमसे आंख न चुरा तुझे कसम है आ भी जा
समय बीतता गया परंतु वह लड़की नहीं आई। अब उन्हें बड़ा गुस्सा आ रहा था। 10:00 बजने को थे, ऑफिस का टाइम भी बर्बाद हो रहा है । उन्होंने गुनगुनाते हुए इधर उधर नज़र डाली
इंतहा हो गई इंतजार की
आईना कुछ खबर मेरे यार की
थोड़े ही देर में उन्होंने देखा 2 युवतियां कॉफी हाउस के अंदर दाखिल हुई और ज्ञानचंद जी के सामने वाली टेबल पर जाकर बैठ गई।
ज्ञानचंद जी रुमाल और गुलाब का फूल बार-बार किसी बहाने से ऊपर उठा कर दिखा रहे थे। यह देख उन्हें बड़ी हैरानी हुई कि युवतियों ने कोई भी रुचि उनमें नहीं दिखाई।
थोड़ी देर बाद एक वेटर एक पत्र और कॉफी का कप लेकर ज्ञान चंद जी के पास आया।
पत्र में लिखा था
यह मेरा प्रेम पत्र पढ़कर
के तुम नाराज़ ना होना
माफ कीजिएगा! आज किसी जरूरी काम की वजह से मैं नहीं आ पाई परंतु आप चिंता मत कीजिए कल मैं आपको ऑफिस में आकर स्वयं ही मिलूंगी।
ज्ञानचंद जी को बहुत ही गुस्सा आया और गुलाब का फूल उन्होंने मरोड़ कर कूड़ेदान में फेंक दिया। अभी वे मुड़े ही थे कि पीछे से दो युवतियों की खिल खिलाने की आवाज आई। यह देखकर वह हैरान हो गए कि सामने और कोई नहीं उनकी पत्नी और साली वैशाली खड़ी थी।
वैशाली गुनगुना रही थी…..
दिल को हजार बार रोका रोका रोका
दिल को हजार बार टोका टोका टोका
दिल है हवाओं का झोंका-झोंका- झोंका
दिल को बचाना, धोखा खाना
धोखा है प्यार यार, प्यार है धोखा

