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Akanksha Kumari

Tragedy Inspirational

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Akanksha Kumari

Tragedy Inspirational

अंधेरे में मशाल सी कालिंदी

अंधेरे में मशाल सी कालिंदी

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मेट्रो शहरों के शोर से दूर अपनी ख्वाबों की कुटिया में वह बिहार के भागलपुर जिले के एक छोटे से इलाके में रहती थी। नाम उसका कालिंदी था और वह अपने मां बाप की दुसरी संतान थी और उसका एक भाई था जो उससे उम्र में चार साल बढ़ा था। कालिंदी को घर में मां बाप से कभी वो प्यार नहीं मिला जो एक संतान को अमूमन मिलना चाहिए। घर में अपने माता और पिता के बीच बचपन से ही उसने साफ लड़ाई देखी थी। खाना बनाने में देरी हो जाने पर उसके पिता का उसकी मां को खरी-खोटी सुनाना, वक्त पर चाय न मिलने पर पिता का चीखना चिल्लाना और कभी कभी तो बिना किसी वजह के ही उसकी मां का पीटा जाना। परिवार जैसा कुछ कभी उसे अगर महसूस हुआ भी तो सिर्फ अपने भाई के ओर से जो कालिंदी को बेहद प्यार करता था।आज वह अपनी पढ़ाई कर पा रही थी तो केवल अपने भाई आयुष के इस ज़िद पर कि अगर कालिंदी उसके साथ उसके ही स्कूल नहीं जाएगी तो वह भी पढ़ाई करने नहीं जाएगा। इकलौते बेटे के जिद के आगे पिता हारकर कालिंदी की पढ़ाई को जारी रखने का फैसला बेमन से ही सही लेकिन ले लिया।


नन्ही सी उम्र से ही यह सब देखते- देखते अब कालिंदी तेरह वर्ष की हो चुकी थी। पढ़ने में शुरू से ही हमेशा उत्तीर्णता हासिल करने वाली इस बच्ची को जब भी कोई गीत गाते सुनकर ऐसा प्रतीत होता था जैसे मां सरस्वती साक्षात उसके अंदर बाद वास करती हो। वह अपने विद्यालय में आयोजित होने वाले विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग भी लेती थी और उसने कई इनाम भी जीते थे। घर के अशांत माहौल में रहकर भी कालिंदी ने कभी मायूस होना नहीं सीखा था। वह हर समय अपने मुख पर एक मीठी सी मुस्कान रखती थी। स्कूल में हुई बातें या अपनी किसी भी छोटी- बड़ी परेशानी को कालिंदी सिर्फ अपने भाई से ही कह सकती थी क्योंकि उसे घर में कोई दूसरा था ही नहीं जो उसकी बात सुने। मां बाप की रोज रोज़ के कलेश की तो अब कालिंदी को मानी जैसे आदत सी हो गई थी। उसने शायद इस बात से समझौता कर लिया था।


कालिंदी ने तो हालातों के साथ ही जीना सीख लिया था लेकिन आयुष के मन पर घर में रोज के झगड़े का बहुत बुरा असर हो रहा था। वह असामान्य रुप से खोया सा रहने लगा। न तो वह अपनी कक्षा में किसी दोस्त सेवात करता न ही अपना पसंदीदा खेल खेलना चाहता था। एक वक्त के बाद तो वह विद्यालय जाने से भी अपना जी चुराने लगा और बस पूरा दिन वह अपने छोटे से कमरे में खुद को कैद करके रखने लगता। अपने पिता की आवाज सुनकर वह कांप उठता था, उसे घबराहट होने लगती थी। अपने ही घर में वह अपनी ये तकलीफ किसी से बांट भी नहीं पा रहा था क्यूंकि मां पहले से ही इतना कुछ झेल रही थी और बहन कालिंदी उससे इतनी छोटी कि आयुष को ही उसे समझाना चाहिए था लेकिन यहां वह खुद की बेसहारा सा हो गया था। आयुष वैसे तो कालिंदी और अपनी मां के आगे हिम्मत दिखाकर और कहता कि एक दिन सब कुछ ठीक हो जाएगा लेकिन वह खुद अन्दर ही अन्दर घुटता चला जा रहा था।फिर एक दिन अचानक से उसकी ये घुटन शांत हो गई। 


अपनी अन्दर की लड़ाई लफ्टेल्ल अपने मां बाप की लड़ाइयां, अपने पिता के हाथों अपनी मां और बहन हो पीटा जाते देखना, इन सब हालातों में आयुष को इतना कमज़ोर कर दिया की उसने अपनी जान ले ली। आयुष ने आत्महत्या कर ली। जवान बेटे का यूं दुनियां से चला जाना किसी भी मां बाप के दिल को दहला सकती है लेकिन आयुष के पिता को चिंता बस इस बात की थी की जब लोगों को यह खबर मिलेगी की दुबे जी के बेटे ने आत्महत्या की है तो समाज में उनका नाम खराब होगा। यही सोचकर उन्होंने लोगों से यह कहना ठीक समझा की आयुष की मृत्यु लंबी बीमारी के कारण हो गई है। मां तो इस मौत पर इतनी बेहाल थी की उन्हें आस पास हो रहे बातों का सुध न थी। इस घटना का सबसे बुरा असर कालिंदी के मन पर हुआ था। आयुष का यूं अपनी जान ले लेना और फिर उसकी मौत का सबको गलत कारण बताया जाना ये सब कालिंदी को। अंदर ही अंदर खाए जा रहा था। वह लोगों को बता देना चाहती थी की उसके पिता घर में ऐसे मार पीट और गाली गलौच करते रहते हैं। वह कहीं न कहीं खोद को भी अपने भाई के इस कदम के लिए जिम्मेदार मानती थी क्योंकि उसे लगता था कि आयुष के इतने करीब होकर भी वह उसके दिल के तूफान को कभी देख नहीं पाई और आज उसका भाई हमेशा के लिए जा चुका है। आयुष वो था जिससे कालिंदी अपनी हर बात करती थी लेकिन इस तरह से उसका आत्महत्या करके जाना कालिंदी को जिंदगी भर का घाव दे गया था।


धीरे धीरे वक्त बीतता गया और जिंदगी सामान्य रूप से चल रही थी कि एक दिन गांव से कालिंदी के एक चाचा उसके घर आए कुछ दिन ठहरने के लिए। जब कालिंदी विद्यालय से पढ़कर लौटी और घर में उनको देखा तो खुश हुई क्यूंकि आयुष के जाने के बाद घर के सूनेपन में इतने दिनों के बाद हल्की सी चहक उठी थी। चाचा कालिंदी के लिए तोहफे भी लेकर आए थे। एक हफ्ता देखते देखते गुज़र गया और एक शाम चाचा कालिंदी के कमरे में आए और उसके नज़दीक आकर बैठ गए। कालिंदी के माता पिता दोनों ही घर से बाहर गए हुए थे और वह अकेली थी। चाचा का ऐसे अचानक उसके कमरे में घुस आना उसको अजीब लगा और वह बिस्तर से उठ खडी हुई और कमरे से बाहर निकलने लगी लेकिन चाचा ने उसका हाथ पकड़ के उसको अपनी तरफ़ खींच लिया और उसके कंधे को बार बार छूने लगे। कालिंदी ने उनको रोकने की कोशिश की , उसने चिल्लाने की कोशिश की तो चाचा ने कालिंदी के मुंह में कपड़ा ठूंस दिया। उस आदमी ने एक पैर कालिंदी के सीने पर रखे उसके साथ जबरदस्ती करते रहे और अपनी बेटी के उम्र की कालिंदी का शोषण किया। चाचा यह घृणित काम करके रफूचक्कर हो गया था।

जब कालिंदी के मां बाप घर वापस आए और अपनी बेटी को ऐसी अवस्था में देखा तो छाती पीटने लगे कि उनकी घर की बची इज्जत भी चली गई। जब होश में आकर कालिंदी ने उनको इस चाचा की असलियत बताई तो उसके पिता में उसे बेहया और बेशरम कहकर चुप करा दिया।कालिंदी उम्र में इतनी बड़ी तो हो ही गई थी की उसे शोषण और बलात्कार का अर्थ मालूम हो। वह अपने साथ हुए दुष्कर्म की एफआईआर कराना चाहती थी लेकिन उसकी मां ने उसे इज्जत और लोक लाज का वास्ता देकर रोक लिया। समाज की नजर में अपनी थोथी इज्जत कायम रखने के लिए कालिंदी को अपने साथ हुए शोषण की बात को दबाना पड़ा। इस घटना ने उसके अंदर के मासूमियत को जिंदा दफ्न कर दिया था। वह जिंदा होकर भी लाश की तरह हो गई थी।उसके साथ हुई इस बात के बाद से उसके पिता का हिंसक व्यवहार सुरभि बढ़ गया था। कालिंदी जब भी अपनी मां को देखती तो उसे ऐसा लगता की सब उसकी गलती की वजह से हुआ है। लेकिन उसका मन इस बात को मानने से साफ इंकार कर देता था कि कसूर उसका था क्यूंकि गलत तो उसके साथ हुआ था और वह अपने लिए आवाज उठाना चाहती थी।

एक दिन कालिंदी ने अपने दिल की बात अपनी मां से कही। उसने उन्हें बताया की वह उस चाचा के बारे में मीडिया को बताना चाहती थी क्योंकि पुलिस के पास जायेगी तो उसके नाबालिग होने की वजह से उसको साथ अपने माता पिता को पेश करना होगा । कालिंदी ने मां से यह भी कहा कि वह उनको अब इस रोज की गालियों और मारपीट से निजात दिलाना चाहती है। मां पहले तो घबराई लेकिन उनकी आंखों के आगे आयुष का मृत पड़ा शरीर दिखा और कालिंदी की हिम्मत ने उनको भी हिम्मत दी और उन्होंने अपने पति के खिलाफ लड़ने का फ़ैसला कर लिया। अगले ही दिन मां और कालिंदी ने जाकर शहर के प्रेस ऑफिस में अपनी कहानी बताई और उसको रिकॉर्ड करके सोशल मीडिया पर भी डाल दिया। देखते ही देखते हजारों ने इनका समर्थन किया। कुछ ही दिनों में पुलिस ने उस चाचा और कालिंदी के पिता दोनों को हिरासत में लिया और उनको सजा भी दी गई। 

कालिंदी की हिम्मत से उसकी मां को भी हिम्मत मिली और कहते हैं ना कि एक मां जब अपने बच्चे के लिए लड़ने निकलती है तो जीत निश्चित होती है। भले ही कालिंदी की का ने देर कर दी और उनको अपना बेटा खोना पड़ा। लेकिन कालिंदी जैसी निडर और बुलंद हौंसले वाली बेटी हो तो हार मानने का सवाल ही नहीं है। आज कालिंदी खुशी खुशी अपनी मां के साथ रहती है आगे चलकर वह औरतों के लिए उनके ही साथ समाज में कार्य करना चाहती है। कालिंदी जैसी लड़की घनी अंधेरी रात में रौशनी की वो मशाल है जो अकेले बुराइयों को जलाने की ताकत रखती है।


                


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