अजनबी पार्ट २

अजनबी पार्ट २

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अब तक राहुल अपनी सपनों की दुनिया में पहुँच चुका था,अब उसका एकमात्र लक्ष्य अपने सेलेक्शन से था। चूंकि अभी वह नया नया घर से निकला था तो बाहर की चकाचौंध की दुनिया ने कुछ समय तक तो उसे अपने आगोश में जकड़े रखा,पर जैसे ही समय बीत रहा था उसे अपने घर,गाँव,एकमात्र दोस्त और मम्मी पापा की याद सताने लगी थी। अभ्यस्त न होने के कारण शुरुआत में वह अजीब अजीब सम्भावनाओं से गुजर रहा था। कभी कभी उस छोटे से कमरे से उसे चिढ़ होने लगती थी,ऐसे समय पर वो किसी से अपनी फीलिंग शेयर भी नही कर सकता था,क्योंकि अति आत्ममुग्धता तथा देसी विद्वता के कारण लोग उससे अक्सर कन्नी ही काटते थे तो मित्र होना तो असंभव सी बात थी।

ऐसे समय में आशा की किरण बन कर एक कन्या आयी।ये वही कन्या थी जिसने आते ही कोटा की धरती पर महोदय का स्वागत अनगिनत असंसदीय अपमानजनक शब्दों(अंग्रेजी गालियों) से किया था। राहुल बेचारा ठेठ देहाती था,पर देसी आदमी की सबसे बड़ी टीआरपी(गुण) उसका ह्यूमर जो कि भोलेपन की चाशनी में लिपटा रहता है, होता है।जब पहली बार शालिनी ने राहुल से हाय बोला तो बेचारे ने नज़रे चुराते हुए मन ही मन सोचा कि कन्या उसे हाय(श्राप वाला) दे रही है, वो निकल लिया।

शालिनी के विषय में बता दूं थोड़, शालिनी की पैदाइश दिल्ली की थी वो भी साउथ दिल्ली की,जो दिल्ली से सम्बंधित होंगे समझ गए होंगें की मैंने साउथ दिल्ली क्यों लिखा।मोहतरमा अपने माता पिता की इकलौती ज़िद्दी सन्तान थीं, जिसकी ज़िद कहने से पहले ही अक्षरशः पूर्ण हो जाती थी ,खैर शालिनी के पिता जी और माता जी दोनों बिज़नेस करते हैं जिनकी लेशमात्र इच्छा भी नही थी कि उनकी बेटी आईआईटी में एडमिशन ले। उनका तो कहना था कि "तुझे केवल हमारा बिज़नेस ही देखना है आगे चल कर,तो चुपचाप किसी प्रीमियम मैनेजमेंट कॉलेज के मैनजमेंट कोर्स में एडमिशन ले ले,इंजीनियरिंग करके क्या करना है तुझे ?" लेकिन शालिनी को अपनी अलग पहचान बनानी थी,उसे अपनी लाइफ में कुछ अलग करना था,उसे मर्सिडीज खरीदनी तो थी पर बिना पापा के पैसे के उसकी मेहनत से जो कि वंशवाद पर आधारित न हो। ब्यूटी विद ब्रेन का परफेक्ट कॉम्बिनेशन थी कन्या। अतिआधुनिक जो कि सोच और परिधान/पहनावे दोनों से हॉलीवुड की ही लगती थी।रंग अति गौरांग की ज़ोर से गाल पर हाँथ फेर देने पर भी गाल लाल हो जाएं।

कमर तक लंबे बाल जो कि सिल्की ऐसे जैसे डेरी मिल्क सिल्क,आंखे मीडियम साइज़(गुस्से में बड़ी हो जाती थीं)एकदम सही ईश्वर कारीगरी।एक सबसे महत्वपूर्ण बात नाक के नीचे और ऊपर वाले होंठ के ठीक ऊपर एक काला तिल था,जो उसकी सुंदरता में अतिशय वृद्धि करता था।

शालिनी ने दो तीन बार राहुल से बात करना चाहा पर जब उसे लगा कि ये बन्दा उसे इग्नोर कर रहा है, तो उसने एक दिन मौका देखकर राहुल को सामने से ही पकड़ लिया और वो पीछे मुड़कर भागे इससे पहले ही उसका हाँथ पकड़कर पूछा आर "यू इग्नोरिंग मी?" हाँथ पकड़ने मात्र से राहुल का शरीर ठीक उसी प्रकार कांप रहा था जैसे जनवरी की हांड़ मास कपा देने वाली सर्दी में १०४ बुखार से पीड़ित किसी व्यक्ति को ज़बरदस्ती किसी ने टंकी के बर्फ से थोड़ा कम ठंडे पानी से साबुन लगा कर नहला दिया हो।

फिर भी किसी तरह सूखते हुए गले से अपने को संतुलित करते हुए राहुल बोला "नही, नहीं तो !" और हाथ छुड़ाने की उसी प्रकार चेष्टा करने लगा जिस तरह चूहा बिल्ली की पकड़ से आज़ाद होने के लिए।

पर इस चेष्टा में बल नहीं था,आखिर उसका हाथ एक पुरूष हाथ था जो आसानी से शालिनी की पकड़ से छूट सकता था पर वो निढाल,शरणागत हो चुका था।शालिनी ने भी उसकी छटपटाहट हो भांप लिया था अबतक और बोली "खा नहीं जाऊँगी तुझे,वो तो मुझे थर्मोडायनामिक्स के नोट्स चाहिए थे और तू तो क्लास टेस्ट का टॉपर है तुझसे बेहतर किसके नोट्स होंगे?"

जैसे ही बातों का सिलसिला चल रहा था,धीरे धीरे राहुल नार्मल होने लगा था।उसने वादा किया कि वो कल उसे वो नोट्स दे देगा।शालिनी की भी आंखों में चमक आ गयी आखिर वो भी क्लास की सेकंड टॉपर थी,जो कि हर बार २-३ नंबर से राहुल से पीछे रह जाती थी।राहुल किसी तरह अपने रूम पर पहुँचा किताबें खोली,पढ़ने के लिए पर आज बार बार वही दृश्य आंखों के सामने चल रहे थे, .अपेक्षाकृत कम पढ़ाई करके जब सोने के लिए अपने बिस्तर पर गया तो नींद कोसों दूर, अजीब सी घबराहट और अजीब सी खुशी एकसाथ मिल रही थी उसे। उसके जीवन में पहली बार ऐसी विरोधाभासी घटना घटित हो रही थी,पुनः २ घण्टे बिस्तर पर करवटें बदलने के बाद आखिरकार बालक को नींद आ ही गयी।सुबह आज क्लास थी पर रात की कश्मकश के कारण देर से उठा,जिससे वो क्लास भी गई।

हालांकि इसका एक पोसिटिव इफेक्ट भी हुआ जो कि राहुल को बाद में पता चला...

आगे की कहानी अगले पार्ट में, धैर्य रखियेगा कहानी बड़ी है और आज समय कम तो इसी में सन्तुष्टि की प्राप्ति करिए।


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