हरि शंकर गोयल

Comedy Classics Inspirational

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हरि शंकर गोयल

Comedy Classics Inspirational

अजब सवाल गजब जवाब

अजब सवाल गजब जवाब

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मैं आज सुबह अपने घर की बालकानी में खड़े होकर नीचे सड़क पर मॉर्निंग वॉक करने वाले लोगों को देखने लगा। ऐसा मैं रोज करता हूं। एक घंटे बालकानी में खड़े खड़े मॉर्निंग वॉकर्स को देखता रहता हूं और खुद को तरोताजा महसूस करता रहता हूं। इससे मुझे दो फायदे हैं एक तो मेरी घर बैठे बैठे मॉर्निंग वॉक हो जाती है और दूसरा ये कि सभी भाई‌ लोगों से राम राम भी हो जाती है। भाई लोग मुझे नीचे बुलाते भी हैं लेकिन मुझे ज्ञात है कि जब कोई व्यक्ति हरिद्वार से लौटकर आता है तो गांव के लोग उस व्यक्ति को छूकर ही हरिद्वार का पुण्य कमा लेते हैं। मैं तो इससे कहीं ज्यादा मेहनत करता हूं। 

ऐसा नहीं है कि मैं मॉर्निंग वॉकर्स को केवल एक बार देखकर अपने को धन्य समझता हूं वरन् एक घंटे तक मन ही मन उनके साथ मॉर्निंग वॉक करता हूं। इससे मेरी मॉर्निंग वॉक भी हो जाती है और मुझे गंगा स्नान जैसा पुण्य भी प्राप्त हो जाता है। बोलो गंगा मैया की जय।

मैं अभी आनंद के सागर में गोते लगा ही रहा था कि श्रीमती जी चाय लेकर आ गईं। बोलीं 

" हे आर्यपुत्र, आप इतने ज्ञानी हैं, विद्वान हैं, बुद्धिमान हैं, हाजिर जवाब हैं, तात्विक हैं, मर्मज्ञ हैं .... 

श्रीमती जी द्वारा इतना मस्का लगाने पर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। मुझे लगा कि मुझे फंसाने के लिए चुपके चुपके कोई जाल बिछाया जा रहा है। क्योंकि मुझे पता है कि जो गुण श्रीमती जी ने बताये हैं, उनमें से एक भी गुण मुझ में नहीं हैं। मैंने कहा 

बस बस भाग्यवान। पटक पटक कर मारने का इरादा है क्या आज ? 

अपने होंठों पर हाथ रख कर बोली, राम राम। मैं ऐसा सोच भी कैसे सकती हूं।मरे हुए को कौन मार सकता है ? 

मैं खतरा भांप गया। मिमियाते हुए बोला, मैं तो शरणागत हूं देवी। मेरे लिए क्या आज्ञा है देवी। 

" दुनिया भर के सवालों के जवाब तो दे देते हो, मेरे कुछ सवालों के जवाब दो तो मानूं " 

मेरा शक अब यकीन में बदल‌ गया कि जाल बिछा दिया गया है और मैं बस फंसने ही वाला हूं। 

मैं बोला, प्रयास करूंगा देवी। आप सवाल करें। 

उन्होंने कहा कि मेरे इन‌ चार सवालों का जवाब दो 

1. ग्रीन टी ग्रीन क्यों नहीं होती है ? 

2. हम आटा पिसवाने ही क्यों जाते हैं, गेंहू पिसवाने क्यों नहीं ? 

3. हर कोई पूछता है कि ये सड़क कहां जाती है, पर सड़क को जाते किसी ने देखा क्यों नहीं ? 

4. संदेश भेजने के लिए हम " मेल " (mail) ही क्यों भेजते हैं फीमेल क्यों नहीं ? 

प्रश्र सुनकर मेरी तो घिग्घी बंध गई। बेहोश होते होते बचा। मेरा पूरा शरीर सन्निपात के मरीज की भांति कांपने लगा। इस भयानक स्थिति से निकलने का कोई मार्ग सूझ ही नहीं रहा था। इतने में मुझे " कौन बनेगा करोड़पति " की याद आ गई। मुझे लगा कि जैसे कोई लाइफ लाइन मिल गई हो। 

मैंने पूछा, " देवी, क्या कोई लाइफ लाइन मिलेगी " ? 

" नहीं, कोई लाइफ लाइन नहीं हैं। बिना लाइफ लाइन के ही जवाब देना होगा " 

मैंने कहा, इतने अजब सवालों का जवाब देने के लिये कोई " क्लू " तो दोगी ? 

" नहीं, कोई क्लू भी नहीं " 

मैंने मन ही मन सोचा कि मैंने ये तो सुना था कि " माया महाठगिनी हम जानी " लेकिन माया सरे-आम इस तरह बेइज्जती करेगी, ये पता नहीं था। मैंने अपने पुत्र अर्जुन और नकुल की ओर सहायता के लिए देखा। वे दोनों हरी चटनी के साथ समोसा खा रहे थे। क्या पता सहायता वहीं कहीं हरी चटनी के पास अटकी पड़ी हुई हो ? 

श्रीमती जी ने कहा, उधर क्या देखते हो ? वो मेरे पुत्र हैं। आपकी कोई मदद नहीं करेंगे। 

मैंने सोचा कि आज तो मेरा चीर हरण होने ही वाला है। श्रीमती जी दुर्योधन की तरह मेरे पुत्रों के समक्ष ही मेरा द्रोपदी की तरह चीर हरण करेंगी। मैं मन ही मन सोचने लगा कि हे भगवान, मेरा क्या होगा आज ? 

अब मुझे और कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था।अंत में मैंने अपना प्रार्थना पत्र भगवान के समक्ष प्रस्तुत कर दिया और निवेदन किया कि प्रभु, जिस तरह आपने अपने भक्तों की लाज रखी थी, उसी तरह मेरी भी रखो, प्रभु। 

मन ही मन मीराबाई का पद गाने लगा 

" हरि तुम हरो जन की पीर। 

द्रोपदी की लाज राखी, तुरत बढायो चीर‌। 

हरि तुम हरो जन की पीर " 

मन ही मन मेरा जाप चल ही रहा था कि इतने में फोन की घंटी बज उठी। हंसमुख लाल जी का फोन था। मुझे लगा कि भगवान ने मेरी पुकार सुन ली है और हंसमुख लाल जी को मेरी सहायता के लिए भेज दिया है। मैं फोन उठाने वाला ही था कि श्रीमती जी ने धीरे से कहा 

खबरदार जो किसी से कुछ नकल मारने की कोशिश की। 

मैंने कहा,जब टीचर सामने खड़ा हो तो कैसे मारेंगे नकल। बचपन से ही हम तो मिठाई का डिब्बा दे देकर पास हुए हैं। इसलिए नकल की जरूरत ही नहीं पड़ी। इसलिए आप निश्चिंत रहो।पूर्णतः आश्वस्त होने पर ही उन्होंने हमें फोन उठाने की अनुमति दे दी। 

हंसमुख लाल जी बोले, " भाईसाहब, आपके पास दो जोड़ी चारपाई हैं क्या " ? 

मैंने कहा," हैं। मगर करोगे क्या "? 

वो बोले, " वो अपने मित्र दुखी राम हैं ना। उनके दोनों पुत्र अमरीका से वापस आ रहे हैं " 

मैंने कहा, पर क्यों 

वो बोले, " भाईसाहब। अमरीका में तो कोरोना बहुत ज्यादा फैल रहा है ना, इसलिए " 

मैं बोला, " एक बात बताओ हंसमुख लाल जी। अमरीका तो संसार का सबसे विकसित देश है। सबसे अच्छी चिकित्सा सुविधाऐं वहीं पर हैं। फिर वे लोग भारत क्यों आ रहे हैं " 

" भाईसाहब, अमरीका में चाहे कितनी भी बड़ी चिकित्सा सुविधा हों लेकिन कोरोना के मरीज टिड्डी दल की तरह बढ़ रहे हैं। सरकार कहां कहां तक इलाज करवाये ? अब तो मरने वालों की संख्या भी इतनी हो गई है कि उनका अंतिम संस्कार करने को जगह ही नहीं बची है " 

मुझे वह दिन याद हो आया जिस दिन दुखी राम जी के दोनों जुड़वां पुत्रों का चयन IIT मुंबई में कम्प्यूटर इंजीनियरिंग के लिए हुआ था। पूरे गांव में मिठाई बंटी‌ थी। उससे भी बड़ी खुशी तब हुई जब उनका प्लेसमेंट एक अमरीकी कंपनी में डेढ़ डेढ़ करोड़ रुपए के पैकेज पर हुआ। दुखीराम जी ने एक शानदार पार्टी का आयोजन किया था। मैं भी गया था उस पार्टी में। उस दिन दुखीराम जी के पैर जमीन पर पड़ने का नाम ही नहीं ले रहे थे। इतना खुश कभी देखा नहीं था उनको। 

मैंने दबे स्वर से पूछा, " आपको इनकी याद नहीं आयेगी ? पता नहीं साल में दो साल में कब मुलाकात हो " 

" भाईसाहब। बच्चे तो मां बाप के दिलों में हमेशा बसे रहते हैं, वे अलग कहां होते हैं ? और आजकल तो मोबाइल है ना। वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बात हो जाया करेगी " उनका जोश बरकरार था। 

मैंने दिल पर चोट करने वाले अंदाज में कहा, " वो तो सब ठीक है लेकिन खीर तो वीडियो कांफ्रेंसिंग से नहीं खिलाई जा सकती है ना। होली दीवाली तो वीडियो कांफ्रेंसिंग से नहीं मनाई जा सकती है ना। भाभीजी को देखो। वो तो इन बच्चों को देख देख कर ही जिंदा हैं, वो इनके बिना कैसे रहेंगी ?" 

वे थोड़ा नरम पड़े। बोले, बच्चों की तरक्की के लिए मां बाप को बहुत सारे समझौते करने पड़ते हैं। हम भी सीने पर पत्थर रख लेंगे। 

मुझे अब सच्चाई का पता चल गया था। मुझे लगा कि अगर मैं अब थोड़ा और कुछ कहूंगा तो दुखीराम जी अब रो ही देंगे। अतः मैंने वहां से हटना ही उपयुक्त समझा। 

पार्टी में घूम घूम कर खाना खाते खाते उनके दोनों बच्चे मिल गये। दोनों ने हाथ मिलाकर अभिवादन किया। मैंने महसूस किया कि पहले तो दोनों बच्चे पांव छूते थे आज हाथ क्यों मिला रहे हैं। मैं समझ गया कि ये अभी से ही अमरीकी तौर तरीके सीख रहे हैं। मन में ही कहा, अच्छा है। जब रहना वहीं है तो वहीं की संस्कृति के साथ जीना भी चाहिए। 

थोड़ी इधर उधर की बातें करने के बाद मैंने पूछा, " बेटा। जॉब तो भारत में भी मिल जाता। फिर अमरीका क्यों " 

" अंकल, भारत में इतना बड़ा जॉब कहां मिलता ? बहुत से बहुत पचास लाख का पैकेज मिल जाता ? यहां पर तो तरक्की के भी कोई ज्यादा अवसर नहीं हैं। सच पूछो तो यह देश रहने लायक ही नहीं है। ना तो कोई कानून व्यवस्था है। ना ढंग की कोई सुविधाएं हैं। हम जैसे सामान्य वर्ग के लोगों को तो कोई रोजगार ही नहीं हैं। और सरकार कर (Tax) भी इतना ज्यादा लेती है कि बस, पूछो ही मत "।

" बेटा, सरकार ने तुम्हारी पढ़ाई IIT जैसे विश्व प्रसिद्ध संस्थान में करवाई है जिसका तुमसे कोई भी शुल्क नहीं लिया है। कितना खर्च किया है सरकार ने तुम्हारे ऊपर। इतनी बड़ी डिग्री लेकर तुम्हें नहीं लगता कि तुम अपने ज्ञान से देश का विकास करो। इसे विकसित देशों की पंक्ति में खड़ा करो " 

वो जोर से हंसे। कहा, " सरकार ने हमें IIT में पढ़ा दिया तो कौन सा एहसान कर दिया है। हम भी कुछ रूपया भेजकर उसकी भरपाई कर देंगे। रही बात देश का विकास करने की। उसके लिए सरकार है ना। सरकार का चुनाव इसलिए ही किया जाता है कि वह देश का विकास करे। पर आप जानते ही हैं ना अंकल कि नेता लोग क्या करते हैं "? 

मैंने कहा, " अगर नेता अच्छे नहीं हैं तो तुम आगे आओ। तुम लड़ो चुनाव। तुम सरकार बनाओ और करो देश का ईमानदारी से विकास " 

" अंकल, प्लीज। इस टॉपिक को यहीं रहने दो। इस देश का कुछ नहीं हो सकता है। इसीलिए तो हम दोनों भाई अमरीका जा रहे हैं। वहां पर अपने मन मुताबिक जिंदगी जिऐंगे। " 

मुझे समझ में आ गया था कि इन पर अमरीकी चश्मा हावी हो गया है। इसलिए चुपचाप चला आया। 

आज वो सारी बातें याद आ गई। 

मैं बोला, " हंसमुख लाल जी। ये तो कोई बात नहीं है कि ये देश किसी को पढाये लिखाये, काबिल बनाये। और जब सेवा का अवसर आये तो पैसा कमाने विदेश भाग जाओ। फिर विदेश में जब मुसीबत आये तो यह देश फिर से याद आ जाये। ये देश है या मुन्नी बाई का कोठा। कि जब मौज करनी हो आ जाओ इस देश में,धर्मशाला समझ रखा है क्या "?

वो बोले, " थोड़ा आहिस्ते बोलो। वो दोनों कांफ्रेंसिंग में हैं। सुनेंगे तो क्या सोचेंगे " 

मैंने कहा, " उनको जो सोचना है सोचें। मैंने तो सोच लिया है। ऐसे कृतघ्न लोगों के लिए ना तो मेरे दिल में कोई जगह है और ना ही मेरे घर का सामान इनके लिए जायेगा " और मैंने फोन काट दिया। 

मैं अभी कुछ और बोलता कि श्रीमती जी ने मेरा ध्यान अपने शो " अजब सवाल गजब जवाब " की ओर आकर्षित कर लिया। 

मैंने मन ही मन भगवान को धन्यवाद अर्पित किया कि मेरी सहायता के लिए उन्होंने हंसमुख लाल जी को भेज दिया। यद्यपि उन्होंने सीधे तौर पर मेरी कोई मदद नहीं की लेकिन मुझे सोचने समझने का समय अवश्य मिल गया। मैं अब पूरी तरह तैयार था और अपने रंग में रंग गया। जवाब देते हुए कहा 

हां तो सुनो। पहले सवाल का जवाब है कि ग्रीन टी उतनी ही " ग्रीन "होती है जितना काला नमक " काला " होता है। 

दूसरे सवाल का जवाब है कि जैसे हम दही जमाते हैं, दूध नहीं। उसी प्रकार हम आटा पिसवाने जाते हैं, गेंहू नहीं। 

तीसरे सवाल का जवाब है कि सड़क वहां तक जाती है जहां से बुखार आता है। अर्थात सड़क को किसी ने जाते हुए नहीं देखा उसी तरह बुखार को भी किसी ने आते हुए नहीं देखा कि यह बुखार आता कहां से है, पर आता जरूर है उसी तरह जिस तरह सड़क जाती जरूर है। 

चौथे सवाल का जवाब यह है कि संदेश भेजने के लिए हम " मेल " इसलिए भेजते हैं जिससे उसके पहुंचने की संभावना बनी रहे। यदि " फीमेल " भेजते और खुदा न खास्ता रास्ते में उन्हें कोई और फीमेल मिल जायें तो बातों ही बातों में कितने जनम गुजर जायें, पता ही नहीं चलता। और वह संदेश कभी उस तक पहुंच ही नहीं पाये। इसलिए ऐसी रिस्क कोई नहीं लेता है और सब लोग " मेल " ही भेजते हैं। 

मेरे गजब जवाबों से श्रीमती जी प्रसन्न हो गयीं। कहा। मान गयी आपको। आप तो वास्तव में गजब के हैं। 

मुझे लगा कि देर से ही सही, पहचान तो लिया। अभी तो शादी को कुछ ही साल हुए हैं।इतनी जल्दी पहचान गईं, लोग तो सात जन्म तक नहीं पहचान पाते। 

खुश होकर वे हलवा पूरी बनाने चली गई। मैंने भी चैन की सांस ली।


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