अदृश्य प्रेम - 2
अदृश्य प्रेम - 2
अदृश्य प्रेम पार्ट - 2
एक दूसरे को अपनी बांहों में भिंचे न जाने कितनी देर हम यूँ छत पे रहे...फिर तभी नीचे से आवाज आई, श्रद्धा क्या कर रही है तू ऊपर नीचे आ के चाय बना दे...ये श्रद्धा की माँ की आवाज थी, श्रद्धा नीचे चली गयी...जाते जाते उसने मुझे पलट के देखा जैसे कह रही हो....
"नजरों में तुमको बसाया है हमने..
तेरे दिल को घरौंदा बनाया है हमने...
ले चलो हमे कहि दूर अब तुम..
कि पहले कदम बढ़ाया है हमने..!!"
मन में 4 लाइनें लिखी रहा था कि मेरे फोन की घण्टी बजी माँ का फोन था...यही वक्त हुआ करता था माँ के फोन का...मैंने फोन उठाया बात करते करते नीचे आ गया, हाल चाल पूछने के बाद ....माँ ने कहा बेटा अब तो तेरे पेपर खत्म हो गए है, कई महीने गुजर गए, छुट्टियां भी शुरू हो रही है घर आ जा...मैंने कहा हां माँ जल्दी आता हूं...ये कह कर मैंने फोन कट कर दिया...मैं जरा परेशान था, माँ की याद भी आ रही थी, और जाने क्यों मन में एक श्रद्धा को छोड़कर जाने का डर सता रहा था...इसी उधेर बुन में फंसा मैं सो गया..!!
अगली सुबह उत्कर्ष उत्कर्ष के चिल्लाने की आवाज से मेरी आंख खुली...श्रद्धा दूध लेने के लिए बुला रही थी...मैं उसके पास पहुँचा तो उसने कहा सॉरी कल मुझे जाना पड़ा था..
मैंने उसे कहा कोई बात नहीं....छत पे शाम को मिलोगी तुम्हें कुछ बताना है..वो बोली ठीक है,फिर मैं दूध लेकर नीचे आ गया...जाने क्यो सुबह से ही मुझे एक डर था की मैं जाऊँ कैसे...इन्हीं चक्करों में शाम भी हो गयी और मैं छत पे पहुँच कर श्रद्धा का इंतजार करने लगा....!
कुछ देर में वो हवा सी लहराती हुई मेरे पास आई...मैंने उसे देखा और पास बैठने का इशारा किया...वो मेरे बगल में बैठ गयी, मैंने कहा एक बात पुछूं...उसने पहले मेरी ओर बड़ी ध्यान से देखा और कहा ,कहो..मैंने उससे पूछा...तुम मुझसे कितना प्यार करती हो..?
उसने आश्चर्य की निगाहों से मुझे देखा फिर मेरी हथेली को अपनी हथेली से थामते हुए बोली...
"तेरी हथेली यूँ ही नहीं थामा है मैंने...
तुझे आत्मसमर्पण कर अपना पिया माना है मैंने..!"
ये कह कर वो चुप हो गयी, शायद मेरे कुछ कहने का इंतजार कर रही थी, दोनों चुप रहे फिर मैं बोला...जानती हो माँ मुझे बुला रही है छुट्टियां चल रही है न इसलिए...उसने बड़ी बेफिक्री से कहा तो चले जाओ...माँ बुला रही है जाना तो होगा ही...कह कर वो आसमान तकने लगी...उसकी आंखों में खारापन आ गया...!
मैंने फिर सवाल किया..ग़र मैं चला गया तो तुम भूल तो नहीं जाओगी...इस पर वो हँसते हुए फिर शायराना अंदाज में बोली...
"वो रिश्ता ही क्या जिसे निभाना पड़े...
वो प्यार ही क्या जिसे जताना पड़े...
रिश्ता तो इक खामोश एहसास है...
वो एहसास ही क्या जिसको आपसे बताना पड़े...!!
उसके इसी अंदाज को आगे बढ़ाते मैंने उसी अंदाज में जवाब दिया..
"कभी सोचा नही था मैंने..
कि जिंदगी में तेरा साथ मिलेगा...
तन्हा गुजर रही थी जो मेरी जिंदगी....
उस में सनम तेरा प्यार मिलेगा..!!"
श्रद्धा ने जोर से ठहाका लगाते हुए कहा ,यार हम तो शायर हो गए..वो मजाक के मुड़ में थी और मैं टेशन में, उसने मुझे ऐसे हताश होते देख कहा...परेशान क्यों होते हो...परिवार भी तो जरूरी है मेरी वजह से वहां न जाओ ये तो गलत होगा न, तुम जाओ और जल्दी आना...ये कह कर वो मुस्कुराई...और फिर मैं भी मुस्कुराया..!
मैंने श्रद्धा से कहा कल जा रहा हूँ सुबह..वो फीकी मुस्कुराहट के साथ बोली जल्दी आना...ये कह कर वो उठ कर चली गयी, मैं भी आ गया समान पैक करने लगा..अगली सुबह ट्रेन थी मेरी, सुबह मैं जल्दी उठ कर तैयार हुआ...और निकलने लगा तभी श्रद्धा आई और बोली...ये लो love लेटर रास्ते में पढ़ना...मैं उसे देख मुस्कुराया, उसकी आंखें नम थी फिर मैं निकल गया, वो मुझे छत से तब तक देखती रही जब तक मैं मोड़ पे मुड़ नहीं गया, मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं अपनी आत्मा यही छोड़े जा रहा हूं..!!
ट्रेन में अपनी सीट पे बैठ कर मैंने सबसे पहले श्रद्धा का दिया लेटर पढ़ने लगा, लिखा था ,"बहुत प्यार है तुमसे",
और ठीक उसके नीचे एक शायरी थी...
"अँधेरा जब घना हो तो हाथ थाम लेना मेरा...
तू हिम्मत है मेरी तू आत्मविश्वास भी मेरा...!!
मैंने लेटर को बन्द किया और उसी के ख्यालों में खोया सो गया, एक रात के सफर के बाद मैं घर पहुँच गया...माँ मुझे देख बहुत खुश हुई, भाई, पापा सब मेरे आस पास थे, सबसे मैं मिल रहा था बातें कर रहा था पर मेरा मन यहाँ लगी नहीं रहा था, मैंने उसे कॉल किया और बताया की मैं पहुँच गया हूँ, फिर कुछ देर उससे बातें हुई और फोन रख माँ के हाथ का खाना खाने लगा.!
ऐसे कई दिन गुजर गए थोड़ी बहुत हमारी बात होती थी...हर बार माँ छुट्टियों का हवाला देकर मुझे रोक लेती..
एक शाम मैं छत पे बैठा श्रद्धा को उसके लिए लिखी अपनी कविता सुना रहा था..
"केवल तेरी ही याद आई...
पूरे दिन सबके बीच भी थी मेरे पास तन्हाई...!!
एक पल भी मैं तुझे भूल न पाया...
तेरी ही याद में मैंने हर पल बिताया...!!
तुझसे रूबरू तो नहीं हो पाया मैं आज...
दिल उदास रहा पूरे दिन, लबों पर हंसी आई..!!
केवल तेरी ही याद आई...
पूरे दिन सबके बीच भी थी मेरे पास तन्हाई...!!
कैसे बताऊँ तुझे मैं दिन कैसे गुजर गया...
तेरी याद ने थोड़ा रुलाया, दोस्तों ने हँसा दिया...!!
दोस्तों का साथ तो मुझे रास आया...
तुझसे दूरी मुझे रास न आई...!!
केवल तेरी ही याद आई...
पूरे दिन सबके बीच भी थी मेरे पास तन्हाई...!!
ये सुनकर वो हँसने लगी बहुत खुश हुई थी वो...फिर उसने कहा ये सब छोड़िये ये बताना था की मेरी जरा सी तबीयत खराब है...डॉक्टर को दिखाया तो बोले की इंसेफ्लाटिस का इंफेक्शन है...सही हो जाएगा...!
ये सुन मैं परेशान हो गया, उसे डाँटा, समझाया ,अपना ख्याल रखने की मिन्नतें की...उसने कहा उत्कर्ष आप परेशान बहुत होते हो...फिर फोन कट कर दिया!
धीरे धीरे 6 -7 दिन गुजर गए उसकी तबियत लगातार खराब हो रही थी...मैं उसके पास जा भी नहीं सकता था, माँ से क्या कहता, घर पे क्या कहता, मुझे अपने पैरों में बेड़िया महसूस होती..फोन पे बात होती तो वो रोती, कभी मुझे हंसाने की कोशिस करती...उससे दूर होकर मैं जीते जी मर रहा था, मैं परेशान तन्हा घर के छत पे सूरज ढलते देख रहा था की फोन की घण्टी बजी, श्रद्धा थी मैंने फोन उठाया...
उधर से आवाज आई...
देखा है बिस्तर, चद्दर, तकिया सब अदल बदल के...
सुकूँ की नींद तो बस सनम....
तेरी बांहों में मिलती है...!!!
फिर वही शायराना अंदाज, मैंने उसे झिड़कते हुए बोला की अपना ख्याल रखो, ज्यादा दिमाग पे जोर ना दो, और आराम करो ,अपनी कसम देकर मैंने उसे सुला दिया...मुझे श्रद्धा की बहुत टेंशन हो रही थी, मैंने गूगल पे सर्च करके सब पता किया, मस्तिष्क ज्वर में तेज सिरदर्द, ऐंठन, उल्टी, बेहोशी, मौत तक की बातें लिखी थी जो मन में घर गयी..!
अगली सुबह जब मैं उठा तो सुबह से श्रद्धा का कोई कॉल नहीं था...सुबह से दोपहर, दोपहर से शाम और शाम से रात हो गयी..श्रद्धा अब तक कॉल नही की मैं बेचैन होने लगा और तरह तरह की बातें मन में आने लगी..!
पूरी रात मैं सो न सका अगली सुबह पता चला वो मुझे हमेशा के लिए छोड़ कर जा चुकी थी...उसकी प्रतिरोधक क्षमता काम हो गयी थी विषाणुओं से लड़ने में,मैं ये सुनकर अपना होश खो बैठा...मैं पागल सा हो गया, मेरी श्रद्धा मुझे छोड़कर चली गयी...मुझे उसी लिखी शायरी जो बहुत गहरी थी...रह रह कर याद आ रही थी...
अँधेरा जब घना हो तो हाथ थाम लेना मेरा...
तू हिम्मत है मेरी तू आत्मविश्वास भी मेरा...!!
मैं उसे देख भी नहीं पाया, मैं उसका साथ नहीं दे पाया जब जरूरत थी तब पास नहीं हो पाया...पागल सा हुए मैं होश खो बैठा...जब होश में आया और आंखें खुली तो सामने माँ पापा परेशान बैठे थे...पूछते रहे वो मुझसे मेरे बेहोश होने का कारण और मैं उन्हें कुछ न बता सका.!
आज श्रद्धा को गए महीने हो गए...और मैं श्रद्धा के यादों को दिल में बिठाए आर्मी में नौकरी कर ली है...लेकिन उसके लिए शायरी लिखना नहीं छोड़ा है मैंने..वो मेरी शायरी अभी भी पढ़ती होगी...यही सोच के आज भी एक शायरी लिख रहा हूं..!!
ख्वाब के नगर में..
बस तुम आते हो...
प्यार क्या है..?
ये बता जाते हो..!!
तुम्हारी यादों के लम्हों में...
रात बीत जाती है...
रह जाता है रात का ख्वाब..
और ख्वाबों में तुम रह जाते हो..!!

