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Sacchidanand Jha

Drama

2  

Sacchidanand Jha

Drama

अध्यात्म जीवन

अध्यात्म जीवन

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कोशी नदी के प्रांगण में एक ऐसा गांव है‚ जिसकी सुन्दरता को स्वयं कोशी नदी ने अपनी बाढ़ की विभिषिकाओं से प्रति वर्ष गढ़ डाली है। बाढ़ से निमिॅत भित्तिका पर बसा गांव‚ जहां कभी किसी राजा की लश्कर (सेना) रहा करती थी‚ अब लश्करी नाम से जाना जाता है। अब ना वहां बाढ़ आती है और ना लश्कर छावनी के कोई चिन्ह ही नजर आते हैं। गांव के पश्चिमी हिस्से में ब्रह्म स्थान है‚ जिनसे यह प्रमाणित होता है कि यहां के निवासी ब्रह्म के उपासक थे। ब्रह्म से ही रुद्र अर्थात् महाकाल श्याम ऊर्जा के रुप में उद्भाषित हुए और उसी ऊर्जा से महाकाली की उत्पत्ति हुई। ऐसा योगवाशिष्ठ में वर्णन है। पीपल के एक पेड़ वहॉ इस तरह छितराये हुए फैल गये थे‚ मानो स्वयं ब्रह्म से सम्पूर्ण परिसर ओतप्रोत हो। उस मनोरम परिसर में बच्चे खेला करते थे। सत्यॠत भी बचपन में वहां खेला करता था। अब विकास का प्रभाव उस परिसर पर भी पड़े बिना नहीं रहा है। पीपल की सभी शाखाओं को काट कर परिसर को छोटा कर दिया गया है।

गांव के पूरब में एक शिव मंदिर है‚ जहां एक तालाब उस मंदिर परिसर की शोभा बढ़ाती है। इस तालाब के बगल में कोशी नदी की सूखी धारा अब भी है‚ जहां कोशी नदी कभी इस होकर बहा करती थी। मंदिर के दक्षिण सत्यॠत और उसके सहपाठियों द्वारा लगाये गये पीपल का पेड़ उसकी निशानी के रूप में आज भी विद्यमान है। गांव के दक्षिण एक ठाकुर बाड़ी और उत्तर में शैलेस जी हैं‚ कुल मिलाकर सम्पूर्ण गांव आध्यात्म का प्रतीक है।

जब सत्यॠत तीसरी श्रेणी में पढ़ता था‚ तब एक दिन अपने छोटे मामा से वह अकारण झगड़ बैठा। किसी ने ठीक ही कहा है कि ननिहाल में पलने वाले बच्चे या तो बिगड़ जाते हैं‚ या सुधर जाते हैं। प्यार–दुलार मिलने के कारण कोई रोक–टोक नहीं। ना मां की डाँट और ना पिता की फटकार! ऐसी परिस्थितियां बच्चों के बिगड़ने के लिये अनुकूल होती है। उन दिनों आठवीं श्रेणी में गणित की पढ़ाई के लिये ‘एलजेबरा’ की पुस्तक हुआ करती थी। एक दिन अपने मामा की नयी पुस्तक पर उसकी दृष्टि पड़ी और वह प्रतिशोध में उस गणित की पुस्तक को फाड़कर बांस के छट्टा पर फेंक दिया। परिणाम यह हुआ कि आठवीं श्रेणी में गणित की परीक्षा में सत्यॠत को प्राप्तांक आठ मिला। विज्ञान पढ़ने का रास्ता बंद हो गया। कोई भी घटना निरर्थक नहीं होती है‚ आशय सम्पन्न होती है। इस आशय सम्पन्न घटना में मन एवं तन दोनों की संलिप्तता के आधार पर आज उसके लिये आध्यात्मिक विज्ञान को समझ पाना सहज हो गया।


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