आवश्यकता किसकी
आवश्यकता किसकी
कम आय के कारण पत्नी के उलाहनों के बाद अरुण को नींद नहीं आ रही थी। उसे दवाई की फैक्ट्री में सारे मानक पूरे करने के बाद समाज की आवश्यकतानुसार दवाइयों का दाम बढ़ाना उचित नहीं लग रहा था।
बाबूजी भी बार बार याद आ रहे थे, स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने अपने परिवार को भुला दिया। अपने अंत समय में कहा था, "मैं अरुण में ज़िन्दा रहूँगा।"
सोचते सोचते आधी रात हो गयी, अरुण निर्णय नहीं ले पा रहा था कि दवाइयों के दाम बढाये या नहीं। उसकी छोटी बेटी जागी और बहुत प्यार से कहा, "पापा इतनी रात हो गयी, सो जाओ ना।"
अरुण ने मन ही मन गर्व से स्वयं को बोला, "जय हिन्द....बाबूजी।"