आस्तिक
आस्तिक
कोरोनकाल ने समाज के हर हिस्से को प्रभावित किया है। ऐसा शायद ही कोई क्षेत्र हो,जो इस वैश्विक महामारी से बच पाया हो। साहित्य भी निश्चित रूप से इस महामारी के प्रभाव से बचा नहीं है। कोरोना की वजह से समाज के जिस-जिस वर्ग को दुःख-दर्द झेलने पड़े हैं,उन सब पर कविताएँ,कहानियां लिखी गई और लिखी जा रही है।
इसी क्रम में मेरी कहानी भी डॉक्टर्स और रोगी के सम्बन्ध को लेकर मैंने रची है। इस समय सबसे ज्यादा जो मानवजाति की रक्षार्थ खड़े रहे वे डॉक्टर्स ही थे। अन्य भी थे,लेकिन डॉक्टर्स ने यह फिर सिद्ध किया कि वे इस धरती पर ईश्वर है। इसी विषय को लेकर यह कहानी रची गई है।
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"अरे! वो ईश्वर पर भी तो भरोसा नहीं करता, अगर करता होता तो शायद आज ये दिन देखना नहीं पड़ता", ऐसा कहते हुए राघव की बावन वर्षीय बूढ़ी माँ, पल्लू में मुँह छुपाकर सुबक-सुबक कर रोने लगी। राघव इस बुढ़िया का एकलौता बेटा है, जो आज सुबह अस्पताल में कोरोना पॉजिटिव आया। अपने मोहल्ले में ज़िन्दादिली से भरा हुआ, हष्ट-पुष्ट छब्बीस वर्षीय युवक के रूप में जाना जाने वाला राघव इस तरह कोरोना की चपेट में आ जाएगा, ये किसी ने नहीं जाना था।
राघव में सब अच्छा था, बस एक वो ईश्वर की सत्ता पर ही भरोसा नहीं करता था। पूरी तरह नास्तिक था! लोगों को कहता था, इंसान के कर्म ही उसकी किस्मत लिखते हैं। पिछले दो सप्ताह से वो अपने मोहल्ले में और शहर में ग़रीबों की मदद कर रहा था। पता ही नहीं चला कब वह संक्रमित हो गया। जब बुखार और छाती में दर्द सा होने लगा तो उसी दिन शाम को अस्पताल में भर्ती हुआ। दूसरे दिन सुबह जब उसकी रिपोर्ट आई तो सबके होश उड़ गए थे। उसके कोरोना पॉजिटिव होने से उसकी बूढ़ी माँ को कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था, आँखों के आगे अंधेरा छा गया। राघव खामोश रहने लगा। सब उससे दूर हो गए।
आज राघव को अस्पताल में चौदह दिन से ज्यादा हो गए। डॉक्टर्स और नर्स की देखरेख में उसकी हालत सुधरती गई। इन चौदह दिनों में उसे डॉक्टर्स और नर्स ने जिस तरह सम्भाला, शायद कोई माँ भी इतना नहीं सम्भाल पाती। जब बार-बार राघव अपनी मौत की काली कल्पनाओं से डर के मारे रोने लगता था, तब नर्स उसे बहुत देर तक समझाती रहती थी। उसे हिम्मत देकर प्यार से खाना और दवा देती थी। जब कोई राघव के पास नहीं आना चाहता था, तब केवल डॉक्टर और नर्स ही उसके पास आते थे।
डॉक्टर और नर्स के इस प्यार भरे और सकारात्मक दृष्टिकोण से आज चौदह दिन में तीसरी बार राघव की रिपोर्ट नेगेटिव आई।
इतने दिनों के बाद राघव को अस्पताल से डिस्चार्ज करने की खबर, जब उसकी माँ ने सुनी तो उसकी गीली आँखों से आँसू का झरना बह निकला। दोस्त अपने यार की घर वापसी की तैयारी करने लगे। मोहल्लेवासी फूल-मालाएँ तैयार करने लगे। तीन दिन बाद जब राघव अपने घर पहुंचा तो सबने उस पर फूल बरसाकर उसका स्वागत किया। दोस्तों के चेहरे पर ख़ुशी का रंग था। माँ की आँखों में उस समय भी आँसू थे, लेकिन ख़ुशी के। इधर, राघव में एक बहुत बड़ा बदलाव आ गया था, जिसे सिर्फ राघव ही जानता था। राघव ने घर पहुँचते ही सबसे पहले माँ के पूजा वाले कमरे में जाकर सभी देवी-देवताओं की तस्वीरों के साथ एक बड़े से कागज़ पर "धन्यवाद डॉक्टर और नर्स" लिख कर उसे वही चिपका दिया और एक दीपक घी से भर के प्रज्ज्वलित कर दिया। राघव ने ईश्वर को देख लिया था। वह ईश्वर,डॉक्टर और नर्स के स्वरूप में रात दिन उसके साथ रहा,यह राघव जान चुका था। राघव अब आस्तिक हो चुका था।
अब पूजा के कमरे में राघव की माँ अकेली नहीं होती थी,राघव भी रहता था।