Ashish Tripathi

Inspirational

4.0  

Ashish Tripathi

Inspirational

आशा की एक किरण

आशा की एक किरण

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आज सब समय से पहले आये थे, कोई भी देर से नही आया, शायद कोई देर से आना ही नही चाहता था। इसी सुबह का तो इंतजार था सबको, आखिर इतनी बड़ी लड़ाई जीतने के बाद ही तो सब यहाँ तक पहुँचे थे। सब एक दूसरे से मिल रहे थे मानो वर्षों बाद मिल रहे हो, अपनी-अपनी बात बता रहे थे कि कैसे उन्होंने ये लड़ाई लड़ी, किसी ने कहा कि ये लड़ाई उसने अपने परिवार के साथ समय बिता कर के लड़ी तो किसी ने अपने नये यूट्यूब चैनल को अपना हथियार बनाया, किसी ने अपनी रचनाओं का सहारा लिया तो किसी ने घर से ही कार्य करते हुये लड़ाई में अपना योगदान दिया, इस लड़ाई में सबसे बड़ा योगदान उन लोगों का था जिन्होंने अधिकांश समय बिस्तर पर आराम करते हुये बिताया और ऐसे सिपाहियों की संख्या सबसे ज्यादा थी! परन्तु आज सभी खुश थे, शायद ये पहली बार ही था कि सभी ऑफिस आने के लिये इतने उत्सुक थे वो सबसे मिलना चाहते थे और सबको अपने बीच देखना चाहते थे। कुछ शाम को चाय की टपरी पर जुटने की बात कर रहे थे तो कुछ पानी-पुरी व चाट खाने की योजना बना रहे थे, कुछ घाट की गंगा आरती देखने जाना चाहते थे तो कुछ शहर की मशहूर लस्सी का स्वाद चखना चाहते थे, हाथों- हाथ मैनेजमेंट ने आज सबके लिये समोसे का आर्डर भी दे दिया था। आखिर ये सब आज इतना नया सा क्यों लग रहा था ये तो पहले भी होता आया था, आखिर ये सब इतने खुश क्यों थे, आज से वो फिर उसी पुराने क्रियाकलाप में लगने जा रहे थे जिसे वो कुछ दिनों पहले लगातार करते आ रहे थे। शायद ये सुकून उनके चेहरे पर इसलिये था क्योंकि वो अपने सभी साथियों को अपने सामने देख रहे थे। कल ही सभी ने बहुत बड़ी जंग लड़ी थी परन्तु उन्होंने किसी को बिना गवाये ये जंग फतह की थी। वो जहाँ कार्य कर रहे थे वो शायद उनके लिये ऑफिस बाद में था पहले ये उन सभी का दूसरा घर था। ऐसा इसलिए नही था कि मैनेजमेंट ने उनको ये समझाया था बल्कि उन सबने खुद ही इस भावना का अनुभव किया था। आज वो सब एक लंबी छुट्टी के बाद अपने दूसरे घर आये थे, वही दूसरा घर जिसने उनको एक नयी पहचान दी थी, जिंदगी जीने के नये तरीके सिखाये थे, उनके अच्छे बुरे की पहचान को और प्रबल किया था। सब एक दूसरे से बहुत प्रेम करते थे इसीलिये तो वो खुश थे सबको स्वस्थ देखकर। अभी कुछ दिनों पहले जो महामारी फैली थी उसने इनको बहुत कुछ सिखाया था, पूरे जीवन भर की छुट्टियाँ मानो एक बार में ही देकर चला गया, इस महामारी रूपी अदृश्य दुश्मन ने बड़े-बड़े धुरंधरों के छक्के छुड़ा दिये थे, इस भाग-दौड़ भारी जिंदगी में सबको रोककर उसने मानो कुछ चेतावनी दी हो। जो लोग अक्सर मैनेजमेंट से छुट्टियों को लेकर नाखुश रहते थे शायद अब उनको कोई शिकायत नहीं थी, शायद उनको अब आने वाले कुछ दिनों तक कोई छुट्टी भी नही चाहिये थी। उनका तो बस अब एक ही लक्ष्य था कि इन दिनों महामारी के कारण जो भी क्षति हुयी चाहे देश की, उनके फर्म की या उनकी खुद की, सब की क्षतिपूर्ति जल्द से जल्द कर डालनी है, वो अपने काम को फिर से उस शिखर पर ले जाना चाहते थे जिसे उन्होंने शुरुआत से ही लगकर जमीन से शीर्ष पर पहुचाया था परन्तु इस महामारी ने उनकी शिखर वाली रफ्तार पर अचानक से मानो ब्रेक लगा दिया था। एक नयी ऊर्जा एक नये जोश के साथ आज वो सब तैयार थे। इसी सुबह का तो इन्तजार था सबको, सब फिर से जिंदगी की उसी पुरानी जद्दोजहद में लगने जा रहे थे पर इस बार सभी खुश थे क्योंकि उनका बिता हुआ कल उन्हें बहुत कुछ सीखा कर गया था। यही तो संस्कृति है इस शहर की, इस देश की जो हर बुरे दौर के बाद एक नयी ऊर्जा के साथ उठ खड़ा होता है, ऐसे ही नही मेरे भारत को महान कहा गया है! जय हिंद!



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