आर्मी ट्रक और बक्सा

आर्मी ट्रक और बक्सा

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बचपन में जब हम कोई छह सात साल के रहे होंगे, घर के पीछे वाले दरवाज़े से शर्मा आंटी के घर भागने में हम दोनों भाई बहन को बहुत मज़ा आता था।आंटी हमें देखकर खुश हो जाती थीं।हम घन्टों उनके छोटे से बेटे पृथु के साथ खेलते।आंटी हमें कुछ न कुछ खाने को भी देतीं रहतीं।
उन दिनों टीवी नहीं थे। मोबाइल और कम्प्यूटर नहीं थे। बड़ा विशुद्ध बचपन हुआ करता था।दिन भर खेलना।घर आकर हाथ पैर धोकर खाना।थोड़ी देर बाद फिर सरक जाना।
शर्मा अंकल आर्मी में किसी  छोटे ओहदे पर थे।शर्मा आंटी का क्वाटर आर्मी के क्षेत्र में था,हमारा घर सिविल क्षेत्र में ,बीच में छोटा सा मैदान था।पिता के व्यवसाय से दोनों परिवार सम्पर्क में आये थे।
शर्मा  परिवार का वहां कोई नहीं था इसलिए पृथु के जन्म के समय सारी जिम्मेदारियां मां ने सम्भाली थीं।
जब शाम को कभी हम उस क्षेत्र में होते तब  नियत समय पर एक बिगुल बजता ध्वज के पास खड़ा सैनिक सलूट मार कर शहीदों को श्रद्धांजलि देता।हम भी सलूट की मुद्रा में खड़े हो जाते।उस धुन को सुन कर हमारे शरीर में कुछ अजीब सी तरंग उठती थी।रोंगटे खड़े हो जाते और न जाने क्यों हम रुआंसे से हो जाते थे। सैनिकों और राष्ट्र के प्रति सम्मान के बीज हम में उसी माहौल में पनप गए थे।तिरंगे  को देख कर रोमांचित होना। 15 अगस्त और 26 जनवरी को दीवाली से बड़ा मानना।अपने घर आये हर मेहमान को पैटनटैंक और कैंट दिखाने  ले जाना यही हमारा प्यारा सा बचपन था।उससे ज़्यादा हमे समझ भी नहीं थी।
एक दिन हमें पता लगा आर्मी के ट्रकों में भर कर सारे सैनिक जा रहे हैं लड़ाई छिड़ गई है।हम भी गए थे। लाइन से जाते ट्रकों को देखने।हाथ हिला कर सलूट कर उन्हें देख हम ये सोच कर  मुस्करा रहे थे कि शायद उनमे से कइयों ने हमें दुकान पर या शर्मा आंटी के घर ज़रूर देखा होगा।
उन्हीं में से किसी ट्रक में बैठकर शर्मा अंकल भी चले गए।शर्मा आंटी अकेली रह गईं।मां उनका और भी ध्यान रखने लगीं।अक्सर शर्मा आंटी घन्टों हमारे घर बैठी रहतीं।पृथु बड़ा होने लगा था।हम उसके जन्मदिन  के सपने संजोते थे पर माँ और आंटी हमें कोई जवाब न देतीं।
उस दिन दोपहर से कुछ न कुछ अजीब सा हो रहा था । पापा दोपहर को खाना खाकर गए पर फिर वापस आ गए।उन्होनें माँ को बाहर बुलाया कुछ कहा और चले गए।शर्मा आन्टी पृथु को दूध पिला रही थीं उन्हें पलँग पर झपकी आ गई थी।उन्हें पापा के आने का पता नहीं चला।शाम को जब वो जाने लगीं तो माँ ने उन्हें घर में ही रोक लिया और उन्हें लेकर रामायण का पाठ करने बैठ गईं।पापा उस दिन बहुत रात को घर आये और एक दरी और तकिया ले कर दुकान पर सोने चले गए।
अगली सुबह अजीब सी सुबह थी।शर्मा आंटी की दहाड़ और विक्षिप्त रुदन से हमारी नींद खुली। पापा पृथु को सम्भाले थे माँ बेकाबू रोती शर्मा आंटी को दोनों बाहों से संभालतीं शर्मा आंटी फिर एक चीख मार कर उनकी पकड़ से छूट जातीं।
उस दिन हमने न जाने क्या क्या देखा कितनी नई बातें सुनीं ।सब हमारे लिए अजब गजब था।उस दिन तक झंडे को हमने गर्व से फहराते देखा था।उसे सम्मान से सलूट करते सैनिक देखे थे ।उसे देख कर रोमांचित होना सीखा था पर उस दिन हमें पता लगा कि आर्मी का ट्रक जब सैनिक को बॉक्स में बंद कर वापस लाता है तब झंडा कफ़न बन जाता है।
 


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