ज़ुल्म का अँधेरा
ज़ुल्म का अँधेरा
अभी तो बस सुबह हुई है,
और सूरज ने अपना रौशन
मुखरा दिखाया है,
तभी तो अँधेरा छठा है,
और चाँद ने ख़ुशी से अपना
जगमगाता मुखड़ा छुपाया है,
लेकिन ज़ुल्म का अँधेरा अबी छठा नहीं,
इंकलाब का सूरज अबी जगा नहीं,
इस ज़ुल्म के अँधेरे में चाँद बन जाओ,
इस अँधेरे में रौशनी की उम्मीद जगाओ,
इंकलाब के सूरज को एक
दिन तो चमकना होगा,
ज़ुल्म के अँधेरे में खड़े चाँद
को आज़ाद करना होगा।