ज़रा सी बात है
ज़रा सी बात है
यूँ पर्दों में क्यों छुपे बैठे हो
ज़रा सूरज की गर्मी में खिल के तो देखो।
यूँ खिड़की बंद, कमरे में क्यों हो
ज़रा ठंडी हवाओं को करीब से जान के तो देखो।
यूँ ख़ामोशी में क्यों चाय पी रहे हो
ज़रा हंसी की चुस्कियां मार के तो देखो।
यूँ मुरझाये से चेहरे को क्यों निहार रहे हो
ज़रा मुस्कराहट के छीटें मार के तो देखो।
यूँ नज़र झुकाये क्यों चल रहे हो
ज़रा नज़र उठाये, ज़िन्दगी को महसूस करके तो देखो।
यूँ छतरी खोले बार्रिश से क्यों बच रहे हो
ज़रा पानी की बूंदों को तुम्हे छूने का मौका तो देके देखो।
यूँ अकेले रास्तों में क्यों भटक रहे हो
ज़रा किसी लड़खड़ाते हुए का हाथ थाम के तो देखो।
यूँ इतना कहाँ भागे जा रहे हो
ज़रा एक बार ठहर के तो देखो।
यूँ आँखें खोल क्यों सो रहे हो
ज़रा आँखें बंद, अपने आप को देख के तो देखो।