ये लाल रंग
ये लाल रंग
ये रंग भी कैसा है मुझे चढ़ा
देखो ये रंग मैं कितना जुनून है भरा
कभी तिलक बन माथे पर सजा
तो कभी कभी ये युद्ध के मैदान मैं पड़ा
उगते सूरज की रोशनी का प्रकाश बन निकला
तो कभी दीपक की रोशनी का उजाला बन उजला
ये रंग भी मुझमें कैसा चढ़ा ये लाल रंग जो तेरा लगा
हिंदुओ का रंग बन कभी धवज बन मंदिर पर लगा
तो कभी दुल्हन की मांग का ताज बन निखरा।
कभी लाल धागा बन हाथों पर बांधा
तो कभी कभी लाल रंग गुलाब सा प्यार मैं सजा।
ये रंग भी मुझमें कैसा चढ़ा उत्साह और जुनून से भरा।
