ये दुरियां
ये दुरियां
इतने पास होकर भी दूर हैं
न जाने राहें क्युं इतनी मजबूर हैं
क्या ये तकदीर का कसूर है
या हर जनम का दस्तूर है
अल्फ़ाज़ मेरे सूखे हैं
जज़्बात मेरे दुःखे हैं
आसपास तेरा ही शोर
पर हम खामोशी में लिपटे हैं
ना हम मजबूत हैं ,ना तुम मजबूत हो
ये दूरियां ही हमारी मजबूरी का सुबूत है
दूर होकर भी पास हैं हम
बस ये आइना हमारे बीच है!
