STORYMIRROR

Rahim Shaik

Abstract

5.0  

Rahim Shaik

Abstract

यादें

यादें

1 min
85


मै जानता नहीं कि आसूं मेरे बाक़ी हैं

कितनों का हौसला बढ़ाते चला

जहाँ जो भी हो, या जितने

मन बहला के लौटूंगा, इकट्ठा करें कुछ यादें

उस सारी गली के और हर कोना,

कुछ मुस्कुराहटें और कई चौराहे।


Rate this content
Log in

More hindi poem from Rahim Shaik

Similar hindi poem from Abstract