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Madhu Kaushal

Abstract

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Madhu Kaushal

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"वसुधैव कुटुंबकम्"

"वसुधैव कुटुंबकम्"

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हम खुशी में मुस्कुराते हैं

मां हमें खुश देख मुस्कुराती है 

दुआ देती है हम खुश रहें

हमारी सलामती के गीत गाती है।


निराशा में आशा जगाता है

अंधेरे में रोशनी दिखाता है 

ख़ामोश रहकर निभाता है

हां वो हमारा प्यारा पिता है।

 

बेटा वंश तो बेटी अंश है

बेटा संस्कार तो बेटी संस्कृति

बेटा आन तो बेटी अभिमान है

बेटा गीत तो बेटी संगीत है।


परंपरा के धागों को जोड़े रखती है

भाभी दो घरों का सेतु होती है

बहनों का बचपना ज़िंदा रखती है

घर में प्रेम के पुल बांधती हैं।


अश्रु बूंद की एक झलक से 

जो सहला दे, वही मित्र है

खुद के आंसू छिपाकर

तुम्हारे आंसू पोंछे ,मित्र वही है।


बूंद बूंद मिलकर सागर बनता है

धागे धागे मिलकर थान बनता है

पन्ने पन्ने मिलकर किताब बनती है

मिलजुलकर रहने से परिवार बनता है।


मोतियों की तरह रिश्तों को संभालो

कोई गिरे तो उसे झुककर उठा लो ,

दिल के साज पर गीत गुनगुना लो।

पाई हुई छोटी बड़ी हर खुशी मना लो।


मां,पिता ,भाई बहन,भाभी रिश्तेदारों ,मित्रों 

 से बना परिवार इंद्रधनुष  सा सुंदर है

अनेक फूलों से सजाया भव्य मंदिर है

जहां बेशुमार प्यार दिलों के अंदर है।

  

लम्हों लम्हों से बनी जिंदगी को सवारें

रिश्ते नातों से बुनी जिंदगी को निखारे

हंस बोलकर अनमोल जिंदगी गुजारें,

वसुधैव कुटुंबकम् उक्ति को चरितार्थ करें











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