वक़्त का कहर
वक़्त का कहर
बहुत रही कामना
पल हर पल
कदम दर कदम
वक्त से बहुत आगे बढ़ने की
सतत चलने की
चलते सूरज के
अश्वों से आगे निकलने की
मगर अब सब कुछ
वही आकर शून्य में
ठहर सा गया है ।
तब कहता हूं
दिल की भावना है कि
अब ठहरो ,
जरा रुको और
अपनों के बहुत करीब
आकर बैठ जाओ
दुनिया को मुट्ठी से
निकाल कर स्वयं को
हथेली में ले लो।
यह समय की चुनौती है
गफलतों के लिए
यहां लेश भर भी
जगह नहीं है
यह दौर है
जिंदगी और मौत के
बीच का
कोई कुछ भी
वजह नहीं है ।
अब आशा-निराशा
संकल्प-विकल्प
इन तमाम
वादों-इरादों को
पुराने कोट की जेब में
कायदे से रखने का
सही समय है
फिर निकलेंगे
गर हम सब
सही समय पर
सब को बचाने
अपने घर पर
सुरक्षित रह लिए।
तो ... तो...
कोई रोक नहीं सकेगा
हमें कल की सुबह में
एक चमकते मुस्कुराते
सूरज को
अपनी हथेली पर उगाने से
अब तो हम बचेंगे
कोरोना के कहर से
सिर्फ और सिर्फ
स्वयं को बचाने से
क्या था
क्या है
क्या होगा
सब बकवास है बातें।
अमन घर रहकर
लड़ेंगे कोरोना से
यही है सब खास बातें ।।