वो गुलाब ..
वो गुलाब ..
वो गुलाब जो दिया था उसने हमें
हमारी पहली मुलाकात पर
जिसे छिपाया था मैनें सबकी निगाहों से
अपने डायरी के पन्नों के बीच
सूख गये हैं अब वो
उन पन्नों के बीच दबे -दबे
पर अब भी आती है उससे वही महक
जो महक समाये हुए थी उसमें उस वक्त
जब वो छिपाये हुए थी अपने अंदर
भरकर मुहब्बत के रंगों के साथ
अपने सुंदरता अलौकिकता का सारा खजाना
दिलाती है जो अब भी हमें
मीठी यादें उन लम्हों की
जिन लम्हों की थी बनी वो साक्षी
और बिखेर देती हैं मेरे चेहरे पर
एक बार फिर वहीं मुस्कान
जो मुस्कान मेरे चेहरे पर आयी थी
पाकर उसे उस वक्त
और कर देती है एक बार फिर
जोरों से हृदय स्पंदित मेरा उसकी याद में
और पाती हूँ मैं खुद को रंगी हुई एक बार पुन:
उसकी मुहब्बत में
ठीक वैसे ही जैसे "राधा" "श्रीकृष्ण " के प्रेम में
और "श्रीकृष्ण" "राधा " के प्रेम में
जो सदैव पास होकर भी दूर रहे
और दूर होकर भी सदैव पास रहे
एक - दूसरे के
ठीक वैसे ही हैं मैं और वो ।

