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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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वो अपना लगने लगा

वो अपना लगने लगा

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ये कोई भ्रम या बकवास नहीं है 

यही सौ प्रतिशत सच है

जिस पर मुझे खुद विश्वास नहीं हो रहा है

पर आज वो मुझे अपना लगने लगा,

जो कल तक हमसे अंजान था,

आज मेरे मन मस्तिष्क पर छा गया।

कल जब उसने बिना किसी स्वार्थ के 

एक अंजाने शख्स की जान बचाई थी

अपने पैसों से उसको दवा दिलाई थी।

तब ऐसा लगा कि शायद वो कोई फरिश्ता है

या दूर का ही सही उसका कोई रिश्ता है।

पर ऐसा कुछ भी नहीं था

वो तो नादान भावुक इंसान था

पर उसके भीतर शायद भगवान बैठा था।

तभी तो वो मुझे भा गया और

मेरे दिल में घर कर गया।

और अब मुझे सबसे ज्यादा

वो अपना लगने लगा,

सबसे करीब लगने लगा।


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