वक्त
वक्त
फिसलते हुए हर लम्हे के साथ
सदाकत उसकी मिट जाती है
जाने क्यों तसव्वुर में मगर
नज़ाकत उसकी सिमट जाती है।
दिल में तब से एक धुन बसी है
किसी कदमों की जो आहट है
कह देने का मन है कहने का नहीं
कैसे कहे ईस दिल की जो चाहत है।
जानता है दिल पर मानता नहीं
कि जो बीत गई तो बात गई
अब कैसे समझाए इसको हम
हर सुबह की यहां रात हुई।
वक्त की मंजिल न जाने क्या
चल पड़ा है तब से रुका नहीं
नाप सके न कोई राह उसकी
किसी मुकाम पे यह टिका नहीं।
उस वक्त के साथ इन कदमों का
भले एक कारवां चल पड़ा है
ईस मन को कैसी जंग सूझी है
यह उलटे कदम दौड़ पड़ा है।
जिसकी कोई मंजिल नहीं
वही ईस मन की राह बनी है
क्या ढूंढना चाहता है यह
न जाने इसने क्या कहानी सुनी है।
और कभी यह वक्त से मिलों आगे
अशाश्वत भविष्य को जीने लगता
फिर टूटा हुआ दिवास्वप्न लेकर
दुबारा टुकड़े उसके सीने लगता।
ईस बीच हाथों से छूट रहा
अनमोल खजाना है वक्त
कड़वा, मीठा जैसा भी है
पर वही हसरत वही हकीकत।
हां वक्त की राह में कुछ काटे तो है
पर जिंदगी का रस्ता वहीं तो है
क्यूं अतीत,भविष्य की परछाइयां ढूंढे
खुशीयों का लम्हा यही तो है।
एक वक्त के बाद मिट जाएगी सांसे
पर वक्त फिर भी चलता रहेगा
बस कदम से कदम मिलाते चलना
यह सूरज तो चढ़ता,ढलता रहेगा।