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Swapnil Singh

Abstract

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Swapnil Singh

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वजूद

वजूद

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इस जहान में बसने वाले

तू खुद के वजूद की ऐसी बस्ती बना, 

जिसमें तेरी शख्शियत जमाने का नूर बन जाये

अपनी ऐसी हस्ती बना,

मुश्किलों की उठती लहरों में जो

मुकाम का साहिल दिला दे

हौसलों की ऐसी कश्ती बना

खुशी की तरन्नुम गमों में भी गुनगुनाती रहे

जीने की ऐसी मस्ती बना।


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