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Swapnil Singh

Drama

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Swapnil Singh

Drama

राखी

राखी

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कुछ ख्वाहिशें पड़ी रो रही है अंदर

कुछ सच तड़प रहे हैं,

कुछ आग की लपटे भाभक रही हैं

कुछ आंखे नाम सी है ।


इंसाफ की गुहार कहा लगाए ?

अपने ही है अब पराए,

बहन का फ़राज़ क्या खूब निभाया

आपने ही खून को दोषी बनाया ।


अब तो बस राखी का इंतजार है

और, कितना दाग लगने बाकी है,

और क्या सुनना बाकी है

अभी तो राखी का त्योहार बाकी है।


मै हार भी गया तो क्या ?

अपनी जीत की खुशी मना लेना

पर वो कलाई पकड़ मै अब ना आयेगी

राखी पर उपहारों की लड़ी अब ना आयगी ।।





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