विलक्षण हिन्द
विलक्षण हिन्द
सामवर्णी शासन, सामधर्मी तंत्र है।
साम सम्भावन, सामवेदी मंत्र है।।
हिन्द ब्रह्म पत्र है, हिन्द कालचक्र है।
हिन्द करता हुंकार, गर्जना प्रचंड है।।
हिन्द वज्र का प्रहार, हिन्द ही त्रिदंड है।
प्रबल प्रखर पराशर, हिन्द पांचजन्य है।।
शत्रुभेदी शूल है, पाशुपत्य मूल है।
हिन्द ही तो है अविंध्य, आदिच्युत अमूल है।।
हिन्द ओंकार है, हिन्द ही अखंड है।
पीताम्बरधारी चतुर्भुजी का रूप है।।
संविधान संविकास, संसरा समस्त है।
हिन्द ही तो है हृदय, जरा यहीं तटस्थ है।।