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Yogendra Soni

Abstract

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Yogendra Soni

Abstract

वीर प्रेम को कहने वाला।

वीर प्रेम को कहने वाला।

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यह प्रेम नहीं है ये जाल है,

यह मन, मस्तिष्क की चाल है,

आंखों ने ही तो, तुझको देखा है,

फिर पड़ा क्यों दिल का रोना है,

तुझको देखूं गली गली, पर तु ना निकले घड़ी घड़ी।

माना तू अपने घर की रानी है, तो मैं भी अपने घर का राजा हूं।

तू परियो सी पली बढ़ी, तो मै भी लाडलो सा पला बढ़ा।

तुझको मुझसे प्रेम नहीं, तो फिर आहट क्यों लेना।

मै डंके की चोट पर कहता, मैंने तुझको चाहा है।

आओ हम तुम एक दुनिया बना लेे , जिसमें हँसीं वादियों का साया है।



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