उठा कर हाथ तुम औरत पे
उठा कर हाथ तुम औरत पे
उठा कर हाथ तुम औरत पे
आखिर क्या दिखाते हो ?
ले आये हो खरीद के उसे
क्या हर बार यही जताते हो ?
वो सहती है सब प्यार के खातिर
शायद तभी उसे इतना सताते हो
और कर दे कभी जो अपनी नाराजगी बयान
तो उसके संस्कारो पे सवाल उठाते हो
उठाते वक्त हाथ,अपने ज़ेहन मे
तुम अपनी माँ का खयाल क्यो नही लाते हो
वो भी है किसी की माँ किसी की बेटी
ये बात तुम हर बार कैसे भूल जाते हो
जोड रखा है पूरे परिवार को उसने
और शायद तुम भी यही चाहते हो
मगर ज़रा सी गलती पे तुम उसकी
उसके पूरे खानदान को गलत ठहराते हो
दर्द छुपा के अपना वो बस हसती रहती है
शायद तभी उसकी कीमत नही समझ पाते हो
और स्वावलंबी है वो मजबूर नही
जो तुम अपने अहंकार से उसे नीचा दिखाते हो
उठा कर हाथ तुम औरत पे
आखिर क्या दिखाते हो ?