उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान: भारती
उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान: भारती
उस्ताद थे ऐसे बनारसी
गंगा में वज़ू पढ़ते नमाज़
सरस्वती को याद कर
शहनाई की तान छेड़ते
इस्लाम में संगीत हराम
सवाल हंसकर कहते
‘क्या हुआ इस्लाम में
है संगीत की मनाही ,
क़ुरान की शुरुआत तो
‘बिस्मिल्लाह’ से ही होती।’
‘संस्कृति सभ्यता प्रतीक’
अपने लगाव प्रिय गंगा
मेहनतकशों की धरती
नजरिये जीवनरेखा गंगा,
उस्ताद थे ऐसे बनारसी
गंगा में वज़ू पढ़ते नमाज़
सरस्वती को याद कर
शहनाई की तान छेड़ते
इस्लाम में संगीत हराम
सवाल हंसकर कहते
‘क्या हुआ इस्लाम में
है संगीत की मनाही ,
क़ुरान की शुरुआत तो
‘बिस्मिल्लाह’ से ही होती।’
मादर-ए-वतन आस्थाओं
प्यार करने वाली एक हस्ती
शहनाई सरताज उस्ताद
उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान।
उस्ताद थे ऐसे बनारसी
गंगा में वज़ू पढ़ते नमाज़
सरस्वती को याद कर
शहनाई की तान छेड़ते
इस्लाम में संगीत हराम
सवाल हंसकर कहते
‘क्या हुआ इस्लाम में
है संगीत की मनाही ,
क़ुरान की शुरुआत तो
‘बिस्मिल्लाह’ से ही होती।’
शास्त्रीय संगीत वह हस्ती
बनारसी लोक सुर शास्त्रीय
घोल शहनाई स्वर लहरियों
गंगा की सीढ़ियों,नौबतख़ानों
उस्ताद थे ऐसे बनारसी
गंगा में वज़ू पढ़ते नमाज़
सरस्वती को याद कर
शहनाई की तान छेड़ते
इस्लाम में संगीत हराम
सवाल हंसकर कहते
‘क्या हुआ इस्लाम में
है संगीत की मनाही ,
क़ुरान की शुरुआत तो
‘बिस्मिल्लाह’ से ही होती।’
गुंजाते राष्ट्रीय महोत्सव दिल्ली तक
सरहदों को लांघकर दुनिया भर अमर
मंदिरों, विवाह, जनाजों में बजने वाली
शहनाई अंतरराष्ट्रीय कला मंच गूंजी
उस्ताद थे ऐसे बनारसी
गंगा में वज़ू पढ़ते नमाज़
सरस्वती को याद कर
शहनाई की तान छेड़ते
इस्लाम में संगीत हराम
सवाल हंसकर कहते
‘क्या हुआ इस्लाम में
है संगीत की मनाही ,
क़ुरान की शुरुआत तो
‘बिस्मिल्लाह’ से ही होती।’
लाल किले राजकीय कलाकार
आप आगे पीछे पूरा देश चले।’
राग काफ़ी आज़ादी की स्वागत
सालगिरह पचासवीं आज़ादी
लाल किले प्राचीर शहनाई
मधुर गूंजी मंगलवंदना धुन
उस्ताद थे ऐसे बनारसी
गंगा में वज़ू पढ़ते नमाज़
सरस्वती को याद कर
शहनाई की तान छेड़ते
इस्लाम में संगीत हराम
सवाल हंसकर कहते
‘क्या हुआ इस्लाम में
है संगीत की मनाही ,
क़ुरान की शुरुआत तो
‘बिस्मिल्लाह’ से ही होती।’
डुमरांव बिहार 21 मार्च, 1916
जन्मे उस्ताद मामू अलीबख़्श
बनारस किताबी तालीम हासिल
आख़िरी दिनों की ‘बेग़म’ यानी
शहनाई से दिल लगा बैठे।
अपनी शहनाई अपनी बेग़म
उस्ताद थे ऐसे बनारसी
गंगा में वज़ू पढ़ते नमाज़
सरस्वती को याद कर
शहनाई की तान छेड़ते
इस्लाम में संगीत हराम
सवाल हंसकर कहते
‘क्या हुआ इस्लाम में
है संगीत की मनाही ,
क़ुरान की शुरुआत तो
‘बिस्मिल्लाह’ से ही होती।’
रियाज़ करते बालाजी मंदिर
मामू के हाथ नन्हे उस्ताद
शहनाई थामी ताउम्र ऐसी
उस्ताद थे ऐसे बनारसी
गंगा में वज़ू पढ़ते नमाज़
सरस्वती को याद कर
शहनाई की तान छेड़ते
इस्लाम में संगीत हराम
सवाल हंसकर कहते
‘क्या हुआ इस्लाम में
है संगीत की मनाही ,
क़ुरान की शुरुआत तो
‘बिस्मिल्लाह’ से ही होती।’
तान छेड़ते ख़ुद उन्हें और
उनकी बनारसी ठसक
भरे संगीत को शोहरत
बुलंदियों पर पहुंचा ।
उस्ताद थे ऐसे बनारसी
गंगा में वज़ू पढ़ते नमाज़
सरस्वती को याद कर
शहनाई की तान छेड़ते
इस्लाम में संगीत हराम
सवाल हंसकर कहते
‘क्या हुआ इस्लाम में
है संगीत की मनाही ,
क़ुरान की शुरुआत तो
‘बिस्मिल्लाह’ से ही होती।’
बिरला ही कोई धर्मनिरपेक्ष
शिल्पकार नेहरू को देखा
धर्मनिरपेक्षता के प्रतीक
उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान
उस्ताद थे ऐसे बनारसी
गंगा में वज़ू पढ़ते नमाज़
सरस्वती को याद कर
शहनाई की तान छेड़ते
इस्लाम में संगीत हराम
सवाल हंसकर कहते
‘क्या हुआ इस्लाम में
है संगीत की मनाही ,
क़ुरान की शुरुआत तो
‘बिस्मिल्लाह’ से ही होती।’
संकटमोचन मंदिर आतंकी
हमले सबसे पहले न सिर्फ
विरोध किया बल्कि
गंगा किनारे शांति अमन
मंगलवंदना शहनाई बजाई।
उस्ताद थे ऐसे बनारसी
गंगा में वज़ू पढ़ते नमाज़
सरस्वती को याद कर
शहनाई की तान छेड़ते
इस्लाम में संगीत हराम
सवाल हंसकर कहते
‘क्या हुआ इस्लाम में
है संगीत की मनाही ,
क़ुरान की शुरुआत तो
‘बिस्मिल्लाह’ से ही होती।’
गांधी हत्या करीब छह दशक
गंगा के तट उस्ताद की शहनाई
मंदिर पर हमले के विरोध
महात्मा गांधी का प्रिय भजन
गाया- रघुपति राघव राजा राम…
उस्ताद थे ऐसे बनारसी
गंगा में वज़ू पढ़ते नमाज़
सरस्वती को याद कर
शहनाई की तान छेड़ते
इस्लाम में संगीत हराम
सवाल हंसकर कहते
‘क्या हुआ इस्लाम में
है संगीत की मनाही ,
क़ुरान की शुरुआत तो
‘बिस्मिल्लाह’ से ही होती।’
बनारस में बम धमाके
‘शैतानी कृत्य’ से आहत
बिस्मिल्लाह के भीतर
कलाकार अपने अंदाज़
प्रतिक्रिया दे सकता
उस्ताद थे ऐसे बनारसी
गंगा में वज़ू पढ़ते नमाज़
सरस्वती को याद कर
शहनाई की तान छेड़ते
इस्लाम में संगीत हराम
सवाल हंसकर कहते
‘क्या हुआ इस्लाम में
है संगीत की मनाही ,
क़ुरान की शुरुआत तो
‘बिस्मिल्लाह’ से ही होती।’
गांधी का युग देखा
आज़ादी के पहले जश्न
पंडित नेहरू संग शिरकत
अब जब मुद्दतों बाद अपने
हिंदुस्तान मज़हबी फसादात
गवाह बन रहे थे उन्हें
महात्मा गांधी याद आ रहे थे।
उस्ताद थे ऐसे बनारसी
गंगा में वज़ू पढ़ते नमाज़
सरस्वती को याद कर
शहनाई की तान छेड़ते
इस्लाम में संगीत हराम
सवाल हंसकर कहते
‘क्या हुआ इस्लाम में
है संगीत की मनाही ,
क़ुरान की शुरुआत तो
‘बिस्मिल्लाह’ से ही होती।’
उस्ताद ऐसे मुसलमान
सरस्वती की पूजा करते
ऐसे पांच वक्त के नमाज़ी
संगीत को ईश्वर की साधना
शहनाई की गूंज के साथ
बाबा विश्वनाथ मंदिर
द्वार कपाट खुलते थे।
उस्ताद थे ऐसे बनारसी
गंगा में वज़ू पढ़ते नमाज़
सरस्वती को याद कर
शहनाई की तान छेड़ते
इस्लाम में संगीत हराम
सवाल हंसकर कहते
‘क्या हुआ इस्लाम में
है संगीत की मनाही ,
क़ुरान की शुरुआत तो
‘बिस्मिल्लाह’ से ही होती।’
उस्ताद ऐसे बनारसी
गंगा, संकटमोचन और
बालाजी मंदिर बिन
ज़िंदगी कल्पना नहीं
उस्ताद थे ऐसे बनारसी
गंगा में वज़ू पढ़ते नमाज़
सरस्वती को याद कर
शहनाई की तान छेड़ते
इस्लाम में संगीत हराम
सवाल हंसकर कहते
‘क्या हुआ इस्लाम में
है संगीत की मनाही ,
क़ुरान की शुरुआत तो
‘बिस्मिल्लाह’ से ही होती।’
अंतरराष्ट्रीय संगीत साधक
बनारसी कजरी, चैती, ठुमरी
अपनी भाषाई ठसक
नहीं चाहत छोड़ सकते ।
उस्ताद थे ऐसे बनारसी
गंगा में वज़ू पढ़ते नमाज़
सरस्वती को याद कर
शहनाई की तान छेड़ते
इस्लाम में संगीत हराम
सवाल हंसकर कहते
‘क्या हुआ इस्लाम में
है संगीत की मनाही ,
क़ुरान की शुरुआत तो
‘बिस्मिल्लाह’ से ही होती।’
भारतीय की ऐसी प्रतिमूर्ति
जिनकी रग-रग में भारत
विविधताओं से मिलकर
देखकर ऐसा महसूस होता
उस्ताद थे ऐसे बनारसी
गंगा में वज़ू पढ़ते नमाज़
सरस्वती को याद कर
शहनाई की तान छेड़ते
इस्लाम में संगीत हराम
सवाल हंसकर कहते
‘क्या हुआ इस्लाम में
है संगीत की मनाही ,
क़ुरान की शुरुआत तो
‘बिस्मिल्लाह’ से ही होती।’
तमाम मजहब, आस्थाएं, देवी, देवता,
ख़ुदा, नदी, पहाड़, लोक, भाषा, शैली,
विचार, कला, साहित्य, संगीत, साधना,
साज़, नमाज और पूजा सब मिलाकर
पहाड़ जैसी शख़्सियत खान साब
यही पहचान तो हिंदुस्तान की है।
उस्ताद थे ऐसे बनारसी
गंगा में वज़ू पढ़ते नमाज़
सरस्वती को याद कर
शहनाई की तान छेड़ते
इस्लाम में संगीत हराम
सवाल हंसकर कहते
‘क्या हुआ इस्लाम में
है संगीत की मनाही ,
क़ुरान की शुरुआत तो
‘बिस्मिल्लाह’ से ही होती।’
नौबतख़ानों से बाहर
वैश्विक मंच पर पहुंचाने
वाले उस्ताद ख़ान साब
नागरिक सम्मानों पद्मश्री,
पद्मभूषण, पद्मविभूषण
सम्मानित भारत रत्न से
उस्ताद थे ऐसे बनारसी
गंगा में वज़ू पढ़ते नमाज़
सरस्वती को याद कर
शहनाई की तान छेड़ते
इस्लाम में संगीत हराम
सवाल हंसकर कहते
‘क्या हुआ इस्लाम में
है संगीत की मनाही ,
क़ुरान की शुरुआत तो
‘बिस्मिल्लाह’ से ही होती।’
संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
ईरान राष्ट्रीय,राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय
बनारस हिंदू,शांतिनिकेतन
मानद उपाधियां ख़ान साब
भारतीय संगीत ऐसी शख़्सियत
आधा दर्जन ज़्यादा किताबें
उस्ताद थे ऐसे बनारसी
गंगा में वज़ू पढ़ते नमाज़
सरस्वती को याद कर
शहनाई की तान छेड़ते
इस्लाम में संगीत हराम
सवाल हंसकर कहते
‘क्या हुआ इस्लाम में
है संगीत की मनाही ,
क़ुरान की शुरुआत तो
‘बिस्मिल्लाह’ से ही होती।’
किताब लिखने वाले मुरली
मनोहर श्रीवास्तव लिखते ,
‘बिस्मिल्लाह ख़ान सच्चे,
सीधे-साधे ख़ुदा में आस्था
मंदिरों में विश्वास रखने वाले
उस्ताद थे ऐसे बनारसी
गंगा में वज़ू पढ़ते नमाज़
सरस्वती को याद कर
शहनाई की तान छेड़ते
इस्लाम में संगीत हराम
सवाल हंसकर कहते
‘क्या हुआ इस्लाम में
है संगीत की मनाही ,
क़ुरान की शुरुआत तो
‘बिस्मिल्लाह’ से ही होती।’
मामूली सी चटाई बड़े मंचों तक
कीर्तिमान स्थापित ऐसे व्यक्ति
शहनाई के स्वरों कर्बला के दर्द
हजरत इमाम हुसैन की शहादत
दृश्य जीवंत मोहर्रम की मातमी
सुनने वाले धुन रो उठते थे।
उस्ताद थे ऐसे बनारसी
गंगा में वज़ू पढ़ते नमाज़
सरस्वती को याद कर
शहनाई की तान छेड़ते
इस्लाम में संगीत हराम
सवाल हंसकर कहते
‘क्या हुआ इस्लाम में
है संगीत की मनाही ,
क़ुरान की शुरुआत तो
‘बिस्मिल्लाह’ से ही होती।’
उस्ताद के वारिसों शहनाई तक
बेच खाई, उसी तरह भारत रत्न
घोषित करने वाली भारत सरकार
मरणोपरांत उपेक्षा अता की।
उस्ताद थे ऐसे बनारसी
गंगा में वज़ू पढ़ते नमाज़
सरस्वती को याद कर
शहनाई की तान छेड़ते
इस्लाम में संगीत हराम
सवाल हंसकर कहते
‘क्या हुआ इस्लाम में
है संगीत की मनाही ,
क़ुरान की शुरुआत तो
‘बिस्मिल्लाह’ से ही होती।’
पैतृक डुमरांव से बनारस तक
कहीं नहीं संग्रहालय ना ही नाम
उस्ताद की कब्र पर बनरही मजार
अब तक शायद पड़ी आधे अधूरी
उस्ताद थे ऐसे बनारसी
गंगा में वज़ू पढ़ते नमाज़
सरस्वती को याद कर
शहनाई की तान छेड़ते
इस्लाम में संगीत हराम
सवाल हंसकर कहते
‘क्या हुआ इस्लाम में
है संगीत की मनाही ,
क़ुरान की शुरुआत तो
‘बिस्मिल्लाह’ से ही होती।’
