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Akash Nekiye

Abstract Tragedy

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Akash Nekiye

Abstract Tragedy

उलझनें

उलझनें

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कुछ सपने हैं

जो सपने रह गये

कुछ लफ्ज़ हैं

जो कहने रह गये

कुछ उलझनें हैं

ऐसा उलझा उनमें

के सुलझे हुए मनमीत भी मेरे

कुछ उलझे हुए रह गये।


कुछ वक़्त है

जो बिताना रह गया

कुछ ज़ख़्म हैं 

जो दिखाना रह गया

कुछ दर्द हैं

जिनको सहने में

ख़ुशी के पलों में भी मेरे

मेरा खिलखिलाना रह गया।


कुछ पल हैं

जो बताने रह गये

कुछ लम्हें हैं

जो सजाने रह गये

कुछ पहर, दो पहर की क्षणदा में

चाँद की चाँदनी की चाह थी

कुछ क्षण, एक क्षण में लेक़िन

सूरज निकलते ही ढह गये।


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