STORYMIRROR

Purva Sharma

Tragedy

4  

Purva Sharma

Tragedy

तवायफ

तवायफ

1 min
550

यूँ तो सवेरा होते हर,

मर्तबा देखा है मैंने 

चीखों की गूंजती हुई रातों के

सन्नाटे को उजालों में हर रोज

खिलते हुए देखा है मैंने।


कई आये हैं, कई आये थे,

कई आएंगे

पर यह नैन अब किसी से

फिर न टकरा पाएंगे।

 

पिके जाम पारो के नाम का 

मिटाने खुदके नामुशान 

लो आज फिर से कोई

देवदास मेरे दर पे है आया। 


बेचा है मैंने जिस्म को, ईमान नहीं 

रोज मरती हूँ लेकिन बेजान नहीं 

मोहब्बत की आज़ादी है फिर भी

कोई इन जज़्बातों का क़दर-दान नहीं।


हाँ हुआ है इश्क़, गुनाह तो नहीं 

वो भी किसी और का है लेकिन खुदा तो नहीं 

पा नही सकती उसे तो क्या हुआ !

उस से दूर रहकर भी उससे जुदा तो नहीं 

न लगा तू मुझ पे तोहमतें,

हूँ तो में आखिर इंसान ही।


Rate this content
Log in

More hindi poem from Purva Sharma

Similar hindi poem from Tragedy