तुम्हारा कल कब लौट के आएगा ?
तुम्हारा कल कब लौट के आएगा ?
शहर में रहने वाले मुसाफिरों
इमारत क्या खड़ी कर दी
खुद में डूब गए हो,
न अपनों को पहचानते हो
न दूसरों से मुस्कुराते हो,
बड़ी गाड़ियों में घूमने वालों
कभी सड़क के उस पार जाकर भी देखो,
ऐसी भी है जिंदगी
ज़रा उन पर नज़र डालकर भी देखो,
दो वक्त की रोटी के लिए तरसे हो
अपने अतीत को इतनी जल्दी भुला चुके हो,
ख़ुदा भी जानता नहीं होगा
कल कौन सूरज को देख पाएगा,
आखिर तुम तो हो एक इंसान
तुम्हारा कल कब लौट के आएगा ?
