तर्पण को अर्पण
तर्पण को अर्पण
बड़ों से घर में हर पल रहती रौनक और खुशहाली है,
उनके बिना कहा हमारे अस्तित्व की छवि निराली है,
घर के बुजुर्गों से हमारे जीवन में जाने कितने रंग हैं,
उनके बिना भला कैसे कोई होली और कैसी दीवाली है
बचपन में हमारे साथ सबसे ज्यादा वक्त बिताते दादा-दादी,
वो तो इस खुश्बूदार बगिया के फूलों के बन जाते माली हैं,
फिर हम कैसे भला बुढ़ापे में उनको अकेला छोड़ सकते हैं,
हमे उस बगिया के माली की अब हर पल करनी रखवाली हैं,
लोगों को कैसे उनके दादा-दादी,नाना-नानी पसंद नही होते है
उनके मन में ऐसी बातें और सोच बड़ो के लिए किसने डाली है,