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Richa Joshi

Abstract

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Richa Joshi

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तलाश सुकून की

तलाश सुकून की

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रोज रोज चलते हैं,

खुद को तलाशने

खुद को तराशने, 

एक अनजान सफर पर।


पर अक्सर ही

कोई न कोई

सिरा छूट जाता है,

फिर गिरते है संभलते हैं,

खुद से ही वादा करते हैं, 

फिर तलाशने लगते हैं। 


खुद को ही उसी, 

एक अनजान सफर पर, 

जहां अक्सर ही कोई न कोई

सिरा छूट जाता है, 

शायद कोई अंत नहीं।


कहीं कोई सिरा नहीं

जिस पर रुक जाये, 

थम जाये और पा ले 

पल कुछ सुकून के

ऐसे ही जीवन के

अनजान सफर पर।


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