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Richa Joshi

Abstract

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Richa Joshi

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मेरी माँ के लिए

मेरी माँ के लिए

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मन के किसी कोने में कुछ चुभता सा है, 

मन का कोई कोना रीता सा है

सब कुछ है नजर के सामने

पर दूर कहीं कुछ दिखता सा है


मेला लगा रहता है मेरे आस पास 

हर कहीं

पर मन अक्सर कुछ ढूंढता सा है


ई श्वर ने निमिष में बहुत कुछ दिया 

मन बीती सदियों से कुछ मांगता सा है 

क्यूँकि मन का कोई कोना रीता सा है

कभी लगता है यूँ ही कहीं से

"आहट" हो तुम्हारे आने की।

 

तुम्हारे होने की और तुम्हारे "अहसासों" की 

पर तुम "नहीं" हो कहीं "नहीं" हो

समाहित हो गई हो उसी ईश्वर में

जिसने हमें बहुत कुछ दिया। 


पर तुम्हें ले लिया

इसीलिए मन का कोई कोना रीता सा है

मन में कहीं कुछ चुभता सा है।


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