तेरी याद
तेरी याद
ज़ाफरानी सी रंगत वाली मीठे गुड़ की भेली है,
वक्त की मद्धम आँच पे बूँद बूँद पिघलती है
"तेरी याद"
ज़बान बढ़ा के चाट लेती हूँ मैंएक याद तेरी।
ज़ायका बहुत देर तक रहता है स्वाद की कलियों पर।
कभी कभी जब कड़वे दिन अति होते है।
और उनपर दुख जैसे करेले नीमचढ़े होते हैं
मैं "खारे पानी" में गुड़ खोल के पी जाती हूँ
बस यूँ समझो मरते मरते जी जाती हूँ।
एक याद तेरी पानी में घुल के कल तकिये पर
ढ़ुलक गई थी,
अब तक चिपके है कुछ रेशमी लम्हात् वहाँ पर।
अक्सर रात नींद में उठ कर चल देती हूँ,
तेरी याद की हुड़क ज़ुबान पर आ जाती है।
ठोकर खा कर गिरती हूँ जब
लम्हों का कोई कोने पाँव में चुभ जाता है
कल नब्ज़ पकड़ कर बोला था हाकिम ये मुझसे,
"खून में मीठा अति हो गया है,थम जाओ
मर जाओगी इन यादों से बाहर आओं"।