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Gurudeen Verma

Abstract

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Gurudeen Verma

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तब मुझसे मत करना कोई सवाल तुम

तब मुझसे मत करना कोई सवाल तुम

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क्योंकि आज मैं जो चाहता हूँ आपसे,

अपने अधिकारों के साथ जीना वतन में,

और महककर जो देना चाहता हूँ मैं,


एक कर्तव्यपरायणता की सुरभि चमन को,

क्योंकि अभी मैं भी एक फूल हूँ इस चमन का,

और आपकी तरहां ही महकना चाहता हूँ मैं

आपकी तरहां ही चाहता हूँ प्यार सभी का।


बहता है खून मेरी नसों में भी सच में,

आपकी तरहां ही इस मिट्टी और वतन का,

मैं भी करता हूँ प्यार आपकी तरहां ही,


इस जमीं-चमन -वतन से सच्ची आत्मा से,

मैं पाना चाहता हूँ सम्मान सभी से यहाँ,

और कर रहा हूँ ऐसे ही कर्म मैं भी सच,

आपकी तरहां इस वतन से वफादारी से।


लेकिन मत करो शक मेरे प्यार पर तुम,

मत करो बदनाम मेरे कर्मों को तुम,

मत करो बर्बाद मेरी बस्ती को तुम,

माफ करो मेरी भी उन गलतियों को,


जो आपकी तरहां मजबूरी में ही, 

मुझसे हुई है कल को सच में,

मत बिछाओ मेरी राह में कांटें तुम,

देखो अपना मन भी ठण्डे दिमाग से तुम।


मैं चाहता हूँ अपने सपनों को पूरा करना,

मैं भी मरना चाहता हूँ इसी देश में,

मत समझो मुझको दुश्मन इस देश का,

मत करो मजबूर मुझको तुम सच में,


छोड़ने को यह वतन और यह चमन,

ऐसे में अगर हो जाऊं गुमराह मैं,

बहाने लगूं खून होकर गुस्सा मैं,

इस वतन के रहवासियों का सच में, 


करने लगूं बर्बाद इस गुलशन को,

तब मुझको मत कहना दोषी तुम,

तब मुझसे मत करना कोई सवाल तुम।


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