ससुराल में मेरी पहली होली
ससुराल में मेरी पहली होली
ससुराल में पहली होली
जब ससुराल आई तो
ससुराल वालों ने मेरी पहली होली
धूम धाम से मनाई,
तो उन्हीं यादों के पिटारे से
आज मैं कुछ लेकर आई ।
पाठ पूजा कर के जैसे ही
पूजा घर से बाहर मैं आई
आड़ में खड़े पिया ने रंगों की
पिचकारी चलाई,
नए धवल सूट पर ऐसा रंग डाला,
हाथों से चेहरा छुपा मैं थी शरमाई
फिर पीछे से ननद ने भी आ घेरा
रंग भरे हाथों से उन्होंने मेरा चेहरा
बड़े प्यार से रंग डाला
छोटे देवर जी भी आख़िर
पीछे क्यों रहते
सीधा रंग वाली बाल्टी उठाई
और सीधा उड़ेल दिया मुझ पर फिर
बुरा न मानो होली है कह चुटकी बजाई
सास खड़ी दूर देख मुस्कुरा रही
कि कैसे सबने
नई नवेली की पहली होली मनाई,
जेठ तो देख बस चले गए वहाँ से, पर
जेठानी भी रंग भर पिचकारी ले आई
एक नहीं दो नहीं तीन जेठानी, उन्होंने
मेरे ऊपर रंगों की बौछार लगाई
फिर मैं भी मस्ती में आई और
पिचकारी भर सबके साथ खूब धूम मचाई ।
आखिर परिवार संग खेल कर होली,
रंग छुड़ाया,
नया सूट पहन जैसे ही बाहर आई,
अगले ही पल
पति के दोस्तों ने पत्नियों संग आ
घंटी बजाई,
एक बार फिर रंगों से मुलाकात हुई कि
दो घंटे रंग छुड़ाने के बाद फिर रतनार हुई
पति भी बार-बार भरते पिचकारी
सब ने मिलकर पहली होली में
मेरी की खूब रंगाई ।
रगड़-रगड़ फिर सब रंग छुड़ाया
पर दिल में तो था सबके लिए प्यार समाया,
मन ही मन खुश हो रही थी मैं
सब ने जो मिल मेरी पहली होली
यादगार बनाई
होली के रंग के साथ प्यार का रंग भर
एक दूजे को दी सबने होली की बधाई
जीवन भी मेरा जैसे रंगों से
गुलज़ार हुआ,
ऐसी मनभावन सुरमयी पहली होली
'रानी' ने ससुराल में मनाई ।