सफर
सफर
निकले थेरास्तो पे और
और एक गुलिस्ता ए जहाँ मिल गया
सोचा था कुछ और
एक और आसमां मिल गया
झुकते रहे महोब्बत में
जैसे की इबादत हो
क्या पता हमसफ़र सा जैसे खुदा मिल गया
चलते गए मंज़िल की चाह में
अनजाने सफर में केसा कारवां मिल गया
हौसला बुलंद पंछियों सा
ले के उड़े आसमान में वहां
किस्मत का चमका सितारा मिल गया।