संस्कार से संस्कृति
संस्कार से संस्कृति


जहाँ धर्म तहाँ ज्ञान हैं
हमारी संस्कृति ही महान हैं
संस्कारों से जो है उपजी
न जाने कहाँ जा सिमटी।।
संस्कृत जिसकी भाषा हैं
संस्कार जिसकी परिभाषा हैं
इस जीवन की यही आशा हैं
संस्कृति की अभिलाषा हैं।।
जात - पात का भेद मिटाओ
स्वयं को तुम संस्कारवान बनाओ
भूमि को उपजाऊ बनाओ
अपनी संस्कृति को तुम अपनाओ।।
अज्ञान अंधेरा दूर भगाओ
स्वयं को तुम समर्थ बनाओ
आसमान को यूँ छू जाओ
संस्कारों को भूल न पाओ।।
सिमटे संस्कारों को तुम वापस लाओ
अपनी संस्कृति को मत भुलाओ
संस्कृत ही हमारी भाषा हो
यही हमारी अभिलाषा हो।।