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Vadher Grishma

Romance

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Vadher Grishma

Romance

संगाथ

संगाथ

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सदियां गुजर गयी किसी को अपना बनाने में,

मगर एक पल भी न लगा उन्हें हमसे दूर जाने मे।

लोगो की साजिशों का रंग उनपे ऐसा छाने लगा,

के उसके बाद तो हम उन्हें अपने दुश्मन नज़र आने लगे।

हम फिर भी हँसते रहे उनके जुल्मों को सह कर भी,

धीरे धीरे उनके सितम सह कर हमें मजा आने लगा ।

जब थक गए हमारी रूह तक को तड़पा कर वों,

तब वो धीरे धीरे हमसे दूर जाने ल ।

ये गम तन्हाई दर्द और यादोँ के साये,ये सब तोहफ़ा हमनें उनसें ही है पाए ।

मेरी ग़लती सिर्फ़ इतनी सी थी के मैं वफ़ादार निकली,

जितने दिल से की उनकी मोहब्बत में उतना ही बड़ा गुन्हेगार निकली ।

बस थोड़ी थी बात के लिए तूने छोड़ा संगाथ मेरा , 

जिन्हे समझाती ती सात जन्मों का संगाथ ।

कुछ देर के लिए दिल के पन्नो को खोलकर तूने देखा होता , हमारी जिंदगी को तू ने देखा होता ।

अपनी पुरानी यादों को महाकाय होता , कुछ खट्टी मीठी मुस्कराहट को देखा होता ।

किए हुए वादो की किड़की को खोला होता ,अपनी विश्वास की गठ को ना छोड़ा होता ।

यूं तो दिया हर कदम पे मेरा साथ , आज थोड़ा मूड के देखा होता ।

संगाथ हमारा आज भी एशा होता , जैसे राधाश्याम का था ।

जनम जनम का था हमारा नाता बस तूने थोड़ा मूड के देता होता ।

सदिया गुजर गयी किसी को अपना बनाने में,

मगर एक पल भी न लगा उन्हें हमसे दूर जाने मे ।



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