समाज हमारा
समाज हमारा
समाज हमारा, समाज हमारा,
कुरीतियों से भरा पढ़ा।
कही लिंग भेद भाव,
तो कही जाति वाद।
तो कही अमीर गरीब का है झमेला ।
यह भेद भाव है बड़ी परेशानी,
याद आ जाती है सबको नानी।
क्यों करते हैं सब भेद भाव,
क्या मिलता है कोई ये बताओ ?
पर समाज सुधारकों ने भेद भाव मिटाया,
इस धरती को भेद भाव से मुक्त करवाया।
समाज में भी अब सुधार आ रहा है,
लड़की लड़कों को एक माना जा रहा है ।
लोग काले गोरे के भेद भाव का नामों निशान नहीं छोड़ेंगे,
लोगों के साथ भेद भाव नहीं होने देंगे।
कभी कभी भेद भाव बन जाता है ज़रूरी,
अगर आपको करना है दूसरों की ख्वाहिश पूरी।
भेद भाव सही है या ग़लत आपकी क्या राय है ?
हिंदू, मुस्लिम, सिख ईसाई सभी भाई भाई है।
इस कविता का लक्ष्य है,
मिटाना लोगों का भय।
कोशिश जब यह पूरी होगी,
तब यह धरती स्वर्ग बनेगी ।
क्या आप दोगे साथ हमारा,
भेद भाव को करो किनारा।
