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Shweta Chaturvedi

Abstract

5.0  

Shweta Chaturvedi

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सिमटा सा जीवन

सिमटा सा जीवन

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शहर बड़े हैं और घर छोटे

कौन मिलने आता जाता होगा ..


कब से यूँ ही पड़ा है बन्द

दरवाज़ा भी चरमराता होगा ..


लोग कम आइने ज़्यादा 

चलो, अपना चेहरा तो नज़र आता होगा ..


हर आराम का सामान है फिर भी 

कितना तन्हा हो हर कोना बताता होगा ..


गरम चाय का प्याला वाट्सऐप पर 

और मिलना, विडियो कॉल पर हो जाता होगा ..


सबेरे का सूरज, साँझ ढले चाँद 

मुँडेर पर झाँक के हाज़िरी तो रोज़ लगाता होगा..


दीवारों और पर्दों का रंग तो बदल जाता है 

मन पर जाने कितनी यादों का रंग गहराता होगा..


अब तो खोल दो रोशनदान और खिड़कियाँ 

बन्द कमरों में ये दिल कितना घबराता होगा...


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