Agrita Sharma
Abstract
मैंने जीवन का मोल,परिवार और इश्वर की ताकत को समझा!
शयद इसीलिए लॉ...
रिश्तों का ऐसा समर्पण भाव यहीं पर देखा जाता है। रिश्तों का ऐसा समर्पण भाव यहीं पर देखा जाता है।
वक्त न कभी ठहरा है न ठहरेगा। चाहें जान चली जाये जिन्दगी से। वक्त न कभी ठहरा है न ठहरेगा। चाहें जान चली जाये जिन्दगी से।
यादों को यादें ही रहने दो उसे फिर याद नहीं करना चाहते। यादों को यादें ही रहने दो उसे फिर याद नहीं करना चाहते।
उनका हो बहुत निष्ठुर हो गया , सुध बुध रही न कोई हमें अब। उनका हो बहुत निष्ठुर हो गया , सुध बुध रही न कोई हमें अब।
देखना चाहते हैं । जी भर कर बस एक बार , खुले आकाश में , परिन्दों की तरह उड़ान भरना । देखना चाहते हैं । जी भर कर बस एक बार , खुले आकाश में , परिन्दों की तरह ...
अपनों का हर पल यहीं हैं गुज़ारिश हार्दिक अपनों से। अपनों का हर पल यहीं हैं गुज़ारिश हार्दिक अपनों से।
कहीं ना हो कभी कोई बवाल हर दिन हो सदा खुशहाल। कहीं ना हो कभी कोई बवाल हर दिन हो सदा खुशहाल।
कितने इलज़ाम दोगे तुम मुझे पढ़ कर रो दोगे। कितने इलज़ाम दोगे तुम मुझे पढ़ कर रो दोगे।
इसी माया के लिए तो नफ़रत करता है इंसान से इंसान, इसी माया के लिए तो नफ़रत करता है इंसान से इंसान,
पल पल चाहत यही है रहती आई ऋतु वसंत की। पल पल चाहत यही है रहती आई ऋतु वसंत की।
माता-पिता की खुशी औलाद की तरक्की में। औलाद की खुशी माता पिता की मुस्कान में। माता-पिता की खुशी औलाद की तरक्की में। औलाद की खुशी माता पिता की मुस्कान में।
धैर्य और हिम्मत से इसको पार किया 2022 का हर्ष से स्वागत किया। धैर्य और हिम्मत से इसको पार किया 2022 का हर्ष से स्वागत किया।
ये बहता हुआ पसीना भी कहेगा वसंत तो वसंत है वसंत ही रहेगा। ये बहता हुआ पसीना भी कहेगा वसंत तो वसंत है वसंत ही रहेगा।
तुम्हें बता रहा हूँ, जीवन अनमोल जिसमे में अनेक हूँ। तुम्हें बता रहा हूँ, जीवन अनमोल जिसमे में अनेक हूँ।
क्योंकि मैं सुभाष चंद्र बोस नहीं क्योंकि मैं नेताजी नहीं। क्योंकि मैं सुभाष चंद्र बोस नहीं क्योंकि मैं नेताजी नहीं।
आप सबकी कविताओं को पढ़ कर मन हर्षाते है। आप सबकी कविताओं को पढ़ कर मन हर्षाते है।
छिप गया सूरज और रात आयी किसी तरह देख सितारा आकाश में फिर से मुस्कुराने लगी। छिप गया सूरज और रात आयी किसी तरह देख सितारा आकाश में फिर से मुस्कुराने लगी।
भीगी हुई जानी पहचानी सवालों के जवाब ढूंढती हुई। भीगी हुई जानी पहचानी सवालों के जवाब ढूंढती हुई।
बगिया इरा की आज भी गुलज़ार है। बगिया इरा की आज भी गुलज़ार है।
अंत में बस यही समझ में आई थी, नारी हमेशा सहन करके जीवन जी पाई थी। अंत में बस यही समझ में आई थी, नारी हमेशा सहन करके जीवन जी पाई थी।