शुतुरमुर्गों का शहर
शुतुरमुर्गों का शहर
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रेत में मुंडी गाड़े हुए
सभी जी रहे
उसी रेत में ढके-छिपे
आँखे खोलते हैं
और फिर बंद कर
सो जाते हैं
इस रेत की चादर
लांघ कर
अब कोई आवाज़ भी
इस पार नहीं आती
सारे गुनाह अब रेत के
उसी पार होते हैं
क्यूँकि मेरे शहर में
अब बस शुतुरमुर्ग बसते हैं।।