शत शत नमन् !
शत शत नमन् !
सप्तविश की वह ऋतु पावस !
बनकर आई नृशंस अमावस !!
पुष्पवाटिका का पहुप सरस !
मुरझा गया कैसे अनायास !!
अरे ! निष्ठुर निधि परूप विधि !
स्वामी से तेरी कैसी अभ्संधि !!
मै प्रकुपित हूँ तुझसे,
मेरा बन्दास छीना मुझसे !!
अंचित सिंचित अध्यात्म विटप !
सुगंध भूखंड में फैलाएगा !!
तब तुम्हारा चिंतन मनन !
मन को चिरन्तन याद आएगा !!
आज तेरे फुल से,
उदीयमान है ये चमन
हे ! तिमीर नाशन,
शत शत नमन !
शत शत नमन !