सन्देश
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जन्म से मृत्यु तक कि ये यात्रा
सुबह जागरण से निद्रा की ये यात्रा !!
सोचता अक्सर ये यात्रा ,
एक वर्तुल या रैखिक
समतल या उर्ध्व !
सुबह जागता हूँ
कुछ करने की उत्कट अभीप्सा से,
सब करके हाथ में आती निराशा !!
रोज लाखों सो जाते चीर निद्रा में,
फिर सूरज आता है अपनी
लालिमा लिए
बिखेर जाता प्रकाश
देखता हूँ ,फिर कालियां खिलने लगी
आशा और निराशा के चक्र
से बाहर निकलने का सन्देश !!!